साहित्य चक्र

29 September 2022

कविताः किसी ने चाहा था मुझे



कोई मुझे चाहती थी कल भी,
चाहती है आज भी,
कोई न चाहती थी कल,
न चाहती है आज।

किसीने बरसात में छाता तले
आसरा दिया था,
किसीने छाता खींच
भींगने के लिए छोड़ दिया था,
किसीने अपनी साँसों में
पनाह दी थी मेरे दिल को,
किसीने अपने दिल में
रौंद दिया था साँसों को।

दो नदियाँ आसपास
दूर-दूर लगातार
पास होकर भी कल तक जो दूर थी
आज भी बहुत दूर है,
कल जो करीब थी,
आज भी करीब है।

किसीने कहा नहीं
पेड़ में स्वप्न भी होते हैं
निषिद्ध फल भी होता है।

रास्ता अब तो खत्म होने को है
आकाश की सीमा भी दिखने लगी है
दोबारा मिलें तो ढूंढेंगे, बात करेंगे
बगीचे के उस निषिद्ध फल की।


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