साहित्य चक्र

29 September 2022

हिंदी कविताः कहीं किसी रोज



मुझे यकीन है तुम आओगे कहीं किसी रोज़,
मुझे भी मनाओगे दिल से कहीं किसी रोज़।
उम्मीदों के साथ जी रही हूँ तुम्हारी यादों में,
कभी तो मुझे मिल जाओगे कहीं किसी रोज़।

भूल कर तुम मुझे खो गए कहीं वीराने में
एक दिन मुझे ढूंढ़ते आओगे कहीं किसी रोज़ ।
तुमसे लगी है प्रीत मन की सुन लो तुम आवाज
मेरे लब पर मुस्कान आएगी कहीं किसी रोज़ ।

याद करती हूँ तुमसे पहली बार मिलना,
किताबों में रख कर तुम्हारें खत पढ़ना।
भूलती नहीं तुम्हारें किए वादों को मैं,
तुम मुझे याद करते आओगे कहीं किसी रोज़।

मुझे याद आता है तुम्हारा रूठना मनाना अक्सर,
मुझे मनाने तो आओगे तुम कहीं किसी रोज़।
मेरे पसंद के गुलाबों को चुन कर लाते थे तुम,
अंतिम गुलाब देने तो आओगे कहीं किसी रोज़।

पुरानी यादों की निशानियाँ आज भीं रखी है,
तुम्हारा दिए गुलाब किताबों के बीच रखे है।
याद हैं जब तुम खत लिखा करते थे मुझे,
और एक ताजा गुलाब लेकर खड़े रहते थे।
मेरे इंतजार में कि मैं कब निकलूँ उन राहों से,
और तुम राहों में कई गुलाब बिखेर देते थें।
मेरा परिसर में आना तुम्हारा मुझे देख कर,
नज़रे घुमा लेना और फिर से मुझे निहारना।
बड़े दिलकश थे तुम और तुम्हारें हर गुलाब,

आज जब उम्र के अंतिम पड़ाव में हूँ तो,
तुम्हारें दिए गए गुलाब के साथ तुम्हारीं यादें हैं।
मेरे पास बस यही एक पूँजी है तुम्हारीं,
इंतजार रहता है तुम्हारें कदमों की आहट का।

सुनो! जब मैं ना रहूँ तो आना मेरे लिए तुम,
और उस अलमारी में रखे गुलाब की किताब को
रख देना मेरी दाह संस्कार वाली जगह से,
क्यूँकी मैं तुम्हारीं निशानी को ले जाना चाहती हूँ
उस अनंत सफर में जहाँ मैं और सूखे गुलाब हो।


लेखिका- पूजा गुप्ता जी


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