साहित्य चक्र

25 August 2022

सत्ता का झुनझुना ( व्यंग्य)


   राजनीति में पद की भूख व लालसा नहीं हो तो , राजनीति में फिर लोग क्यों आएंगे ? आज कल राजनीति में आने के लिए  कब्जे धारी, दो नंबर के व्यापारी, गुंडे बदमाश लैंडलॉर्ड ,अनैतिक काम में लिप्त लोग व अन्य कैटेगरी के लोग अपने सुरक्षा कवच के लिए राजनीति में प्रवेश कर नेताओं के कमाऊ बन जाते हैं फिर धीरे धीरे पद लालसा बढ़ती है। 





जुगाड़ बनाना, चापलूसी व छोटे मोटे कार्यक्रमों का खर्च वहन करने की जोखिम के सहारे नेताओं की आवभगत कर ब्लाक, जिले व राज्य स्तर के संगठन में विभिन्न पदों पर जगह बनने के बाद नेताओं के साथ के फोटो आदि से बायोडेटा तैयार कर जयपुर दिल्ली के रास्ते जान कर गोटियां बिठाते है फिर सता का झुनझना बजता है ,झुनझुने की आवाज होते ही सता में बैठे लोग जब चुनाव में डेढ़ दो साल बचते हैं तब सोचते हैं चुनावी चोसर में कार्यकर्ताओं  की नब्ज टटोलते है, सरकार तबादलों में छूट देकर कार्यकर्ता व नेताओं की झुग्गियों के आगे अजीब नजारे  अभिष्नशा से ले जोइनिग तक पेट भराई सता के झुन्नझुने के सहारे से होने के समाचार दबी आवाज में सभी विभागों में सुनने में आते हैं इस झुनझुने से सता के लोगों को पता चलता है कि चुनावी जमीन की जाजम तैयार हो रही है। फिर सता के विभिन्न बोर्डों/आयोगों के गठन का झुनझुना  बजता है ,अब इस झुनझुने की आवाज से पार्टी के आकाओं की परख में उन चेहरों के ( वोट नोट सोट व जनता के बीच छबी के ) पिटारे खुलते हैं। 

यह झुनझुना( सता का झुनझुना) पाने की जुगाड़ में जाति / धर्म / 36 कोम के  तराजू से तोल मोल के गलियारों के पापड़ बेलने पर सता का झुनझुना  देकर चुनाव की जमीन में खाद पानी देने की कवायद शुरू होती है यह सता की भागीदारी का झुनझुना कई चरणों में बजता है , इसके लिए जातियों की बैशाखियां के सहारे कई झरे - कुड़छै अपनी किस्मत आजमाते हैं । कुछ आश्वासनों के झुनझुने से खुश तो कुछ संगठन के पदों के झनझुने पाकर खुश हो  जाते हैं। ये सब अख़बारों में अपने गीत  विज्ञापन से जनता में सता व संगठन के ढोल पीटने लगते  हैं  । इतने में आचार संहिता लागू  हो जाती है सता का सुख भोगने से पहले ही चुनावी माहौल पार्टी को जिताने के झुनझुने को बजाते घूमो।  अब सता में आने के लिए पार्टी के आकाओं से टिकट रूपी झुनझुना प्राप्त करने की बड़ी रेस के बड़े झुनझुने को पाने की दौड़ के घोड़े दौड़ते हैं । 

ये तो आप सब जानते हैं यह झुनझुना बहुत बड़े मोल तोल का होता है , ये झुनझुना पाकर छोटे मोटे पुराने झुनझुने , वोटों के  सौदागरों के झुंझलाए चेहरों को रोंनक  प्रदान करने व  फिर कई प्रलोभनों के झुनझुने गांव /गली /शहर के कोन कोने में कार्यकर्ता रूपी लोगों के हाथों में थमाए जाता है ।ये सता का झुनझुना सता व विपक्ष दोनों के हाथ में बजता है ,जिसका झुनझुना जनता की समझ में आ जाए वह झुनझुना सता के गलियारों तक पहुंचने से पहले ही बाड़े बन्दी में झुनझुना जोड़तोड़ से सरकार बनने तक अनमोल ही रहता है । सता का नशा विष घोलने व कल्याण कारी कामों के झुनझुने भी सुविधानुसार इस्तेमाल करते हैं। हर स्तर पर झुनझुना बजता है चाहे सामाजिक ,धार्मिक  व अन्य संस्थाओं में भी सता के लिए झुनझुना बजाना पड़ता है ।वाह री सता ,वाह रे झुनझुना ।

आजकल तो मत दाता भी ठगा जा रहा है एम एल ए , एम पी जिनको गला फ़ाड़ फ़ाड़ रात दिन एक कर जिताते हैं ,वे भी करोड़ो में बिक सरकार गिराते हैं ।ये सता का झुनझुना सी एम , पी एम भी गला फाड़ कर फेंकते हैं ,जनता जाए भाड़ में रोजगार ,बेरोजगारी , महंगाई न जाने जनता के मुधे किसी को प्रवाह नही अपने धना सेठों को माला माल करने में लिप्त  छोटे मोटे झुन्झूनो को ऐसे बयान देने व देश में अराजकता फैलाने पार्टी के लिए भौंकने का झुनझुना थमा देते हैं, कुछ बड़े झुनझुने स्वागत   विज्ञापनों के सहारे नजदीकियां बनाकर नेताओं के फोन से वारे न्यारे करते हैं ये झुनझुना फिर स्वार्थी ,चापलूस हाजरिए ,दलाल , चमचे ,बिचौलिए व चाटुकारआदि रूपों में  देखने को मिलते हैं । ये नीचे स्तर से ऊपर तक पाए जाते हैं जो सता में हो चाहे विरोध तक के लोग सुख भोग भरिष्टाचार में गहरे डूब जाते हैं । वाह वाह सता के झुनझुने तेरा क्या कहना ।


                                                           लेखक- मईनुदीन कोहरी


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