साहित्य चक्र

27 August 2022

"मेरे बच्चे का प्रथम शब्द"



प्रथम बच्चे का पाँच महीने का गर्भपात टूट गई थी मेरे मन की आस, 
तब तू दोबारा आया मेरी गोद भराई हुई मन हर्षाया।

रातों को जागना नन्हें नन्हें पैरों और हाथो को हिलाना, 
मेरी गोद को झूला समझ कर तुम्हारा प्यार से सो जाना। 

तुम मासूम से हमेशा तुम्हारी नज़रे मुझे ढूंढती थी जब ओझल होती थी। 
इंतजार करती थी कब तुम्हारें कंठ से माँ शब्द निकले, 
जब तुमने मुझे पहली बार मम्म म करके संबोधित किया। 

तब अविरल धारा आँसू की बह निकली थी खुशी से, 
तुमने मुझे पूरा कर दिया था मेरे जीवन में आकर मेरे बच्चे। 

बलैया लेना, चौक बधावा, नानी दादी दादा का प्यार, 
सब धूमधाम से मनाया गया था तुम्हारा जन्मदिन का कार्य। 

तुम्हें पीठ पर लाद कर लोरी सुनाना तुम्हारा पल भर का सोना जागना, 
तुम आये मेरे जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ। 

तुम्हारी परवरिश में कोई कमी ना हो इसलिए मैंने सोना छोड़ दिया, 
तुम्हारे साथ खेलती तुम संग मैं भी बच्चा बन जाती थी। 

देखो तुम तो अब बड़े हो गए हों पर मेरा मन बच्चा रह गया, 
अब तुम करना मेरी परवरिश तुम्हारें सहारे टिकी है मेरी जिंदगी।


                                                          लेखिका- पूजा गुप्ता


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