साहित्य चक्र

27 August 2022

कविताः स्पर्श


एक रोज की बात जब
मेरी दांयी हथेली ने
तुम्हारी बांयी हथेली की
कनिष्ठा, अनामिका, मध्यमा
तीन उंगलियों का स्पर्श महसूसा था,
सिर्फ हथेलियां महसूसतीं
तब तलक ठीक था,
पर रूह तक भीग गयी उसमें
महसूस कर लिया रूह ने भी:
वो स्पर्श,
बस गया है वो स्पर्श,
निष्प्राण होने तक भुलाया नहीं जा सकेगा।
नम कुछ गीला सा- गुदगुदाता हुआ
जिसने छुआ तो हथेली को था,
पर अहसास बन भिगो गया मेरा पूरा वजू़द!
जो दे जाता है अब भी कभी
मेरी यादों में दस्तक
दिल में मीठी चुभन
वो तुम्हारा स्पर्श

लेखिका- अनीता मैठाणी


No comments:

Post a Comment