साहित्य चक्र

24 August 2022

तनाव और हँसी का हृदय पर प्रभाव

हमारे ह्रदय पर जिन दो चीजों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है व हैं--तनाव और हँसी। जहाँ एक ओर तनाव का ह्रदय के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है तो वहीं दूसरी ओर हँसी ह्रदय को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। तनाव एक द्वंद्व है जो व्यक्ति के मन एवं भावनाओं में अस्थिरता पैदा करता है। हमारी मनःस्थिति  एवं बाहरी परिस्थिति के बीच सामंजस्य न होने के कारण तनाव उत्पन्न होता है। तनावग्रस्त  व्यक्ति काम के प्रति एकाग्र नहीं रह पाता जिससे उसकी कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अल्प मात्रा में तनाव होना जीवन का एक हिस्सा है और कोई भी व्यक्ति इससे बचा नहीं रह सकता। जीवन में प्रगति करने के लिए नियंत्रित तनाव होना बुरा नहीं है। लेकिन जब यह तनाव  अनियंत्रित होकर हमारे भावनात्मक और शारीरिक जीवन का हिस्सा बन जाए तो यह आगे चलकर खतरनाक साबित हो सकता है।






हमारे मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमिटर्स होते हैं (सेरोटोनिन, डोपामाइन)

जो खुशी और आनंद की भावनाओं को प्रभावित करते हैं। लेकिन अत्यधिक तनाव की स्थिति में ये असंतुलित हो सकते हैं। इनके असंतुलित होने से व्यक्ति के मस्तिष्क में नकारात्मक विचार आते रहते हैं और उसे लगातार ऐसी चीजें सुनाई और दिखाई देती हैं जो असल में नहीं होती। ऐसे व्यक्ति के मस्तिष्क में आत्महत्या जैसे विचार आने लगते हैं। ऐसे व्यक्ति का पाचन तंत्र भी खराब रहता है उसे कब्ज जैसी समस्या का भी सामना करना पड़ता है, उसका वजन बढ़ना, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और ह्रदय धमनी रोग आम समस्या हैं । सिकुड़ी हुई धमनियों के कारण ह्रदय तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं पहुँच पाते हैं। इससे ह्रदय को अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है जिससे सीने में दर्द होने लगता है। धमनियों में ज्यादा अवरोध होने पर हार्ट अटैक हो जाता है और पूरी तरह से अवरोध होने पर हार्ट फेल्योर हो जाता है। 

हँसी जीवन की स्वस्थता का आधार है। तनाव रूपी तपते रेगिस्तान सी जिंदगी में जब हँसी रूपी सौहार्द की बरसात होती है, तो जीवन में खुशी के सुरभित पुष्प खिलने लगते हैं। हँसी एक तरह का ध्यान है जो आनंद की अनुभूति प्रदान करता है। जब नाभि से उठी हुई गुदगुदी, कंठ से हास्य में बदलकर निकलती है, तो मन को चारों ओर से हटाकर चित्त की वृत्तियों का निरोध कर देती है, जिससे आनंद की प्राप्ति होती है।

जब हम हँसते हैं तो हमारे शरीर में डोपामाइन हार्मोन्स (प्लेजर हार्मोन्स) बनने लगते हैं। ये हार्मोन्स न्यूरो ट्रांसमीटर की तरह काम करते हैं। किसी परीक्षा के उत्तीर्ण करने पर, किसी प्रतियोगिता में सफल होने पर, कोई अवार्ड मिलने पर, अपना पसंदीदा आहार खाने से, अपने पसंदीदा कपड़े पहनने से तथा अपनी मनपसंद के कार्य करने से इस प्रकार के हार्मोन्स में वृद्धि होती है। हँसने से ही सिरोटोनिन हार्मोन्स निकलते हैं। ये मूड बूस्टर का कार्य करते हैं। ये एण्टी डिप्रेसेण्ट  होते हैं अर्थात तनाव से बचाते हैं । हँसने से ही एण्डोर्फिन्स हार्मोन्स निकलते हैं जो दर्द निवारक होते हैं। ये तीनों ही हार्मोन्स हमारे ह्रदय को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
   
ह्रदय को स्वस्थ रखने के लिए हमें तनाव से बचकर रहना चाहिए और सदैव  हँसते मुस्कुराते रहना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी जीवनशैली में तदनुसार परिवर्तन करें। हमें प्रचुर मात्रा में पानी पीना चाहिए तथा ऐसे फलों और सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए जिनमें पानी की मात्रा अधिक हो। पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करना चाहिए जिसमें शरीर के लिए जरूरी सभी विटामिन्स और खनिज हो। हरी पत्तेदार सब्जियाँ एवं मौसमी फलों का सेवन करना चाहिए। काजू, बेर, सेब, इलायची, नींबू का रस, ब्राह्मी का सेवन करने से तनाव में राहत मिलती है। चुकन्दर का सेवन करना चाहिए, इसमें उचित मात्रा में पोषक तत्व होते हैं जैसे विटामिन्स, फोलेट, यूराडाइन और मैग्निशिय आदि जो हमारे मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमिटर्स की तरह काम करते हैं जो कि मनःस्थिति को बदलने का कार्य करते हैं। अपने भोजन में तेल की मात्रा सीमित करें। विभिन्न प्रकार के तेलों (जैतून का तेल, सरसों का तेल, मूँगफली का तेल, सोयाबीन का तेल) का प्रयोग करें। जैतून के तेल में उचित मात्रा में एंटी-ऑक्सिडेट्स और मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड्स पाये जाते हैं जो हृदय रोग तथा तनाव को दूर करने में मददगार साबित होते हैं। 

भोजन में एवं सलाद के रूप में टमाटर का सेवन करें। टमाटर में लाइकोपीन नाम का एंटी-ऑक्सिडेंट पाया जाता है जो तनाव से लड़ने में मदद करता है। व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में व्यायाम, योग एवं ध्यान को अवश्य जगह देनी चाहिए। इससे मस्तिष्क को शान्ति मिलती है तथा हार्मोनल असंतुलन ठीक होता है। व्यक्ति को सुबह उठकर सैर पर जाना चाहिए उसके बाद योगासन और प्राणायाम करना चाहिए।प्राकृतिक एवं शान्ति प्रदान करने वाली जगहों पर जाना चाहिए साथ ही मधुर संगीत एवं सकारात्मक विचारों से युक्त किताबें पढ़नी चाहिए।

धूम्रपान, मद्यसेवन या किसी भी प्रकार का नशे का सर्वथा त्याग करना चाहिए।



                                                                            लेखक- विनय बंसल


No comments:

Post a Comment