*एक*
पागल हो जाना
इतना आसान नहीं है
हो गये तो उबरना
और भी मुश्किल है।
*दो*
सब कुछ उड़ जाता हवा में
पर हवा भी देखो कैसी विचित्र है
सभी को तितर बितर कर देती
खुद बैठी रहती चुपचाप।
*तीन*
उस दिन गया था वह
फिर लौटा नहीं,
मैंने लौट कर ऐसा
कौन-सा तीर मार दिया?
इस बार जो जाऊंगा
फिर लौटूंगा नहीं।
*चार*
डर किस बात का?
तेरा अब बचा क्या बेटा
जो समंदर की प्यास लिए
आकाश की ओर मुँह बाये बैठा है?
*पाँच*
था तो बहुत कुछ
पर सब कुछ बिखर गया
सब कुछ उजड़ गया,
बचा सका जो थोड़ा
उसे भी भोग नहीं पाया।
. अनुवाद: राधू मिश्र
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