साहित्य चक्र

07 November 2020

कोमल की कुण्डलियाँ



प्यारे,समझो प्यार से, बँधे सदा यह डोर।
रिस्तों की इस डोर को, करें नहीं कमजोर।
करें नहीं कमजोर, प्यार की रेशम डोरी।
एक बार बँध जाय, जाय ना फिर यह छोरी।
कह 'कोमल' कविराय, जतन से रहो सँवारे।
रिस्तों की यह डोर, बड़ी नाजुक है प्यारे।


रखना हरदम प्यार से, सम्बन्धों की डोर।
झूठ,स्वार्थ,अभिमान से, होती है कमजोर।
होती है कमजोर, जोर मत इस पर डालो।
करके हरदम त्याग, प्रेम से इसे सम्हालो।
कह 'कोमल' कविराय, स्वाद रिस्तों का चखना।
हमीं-गमीं का भाव, सदा रिस्तों में रखना।


                                      श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'


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