साहित्य चक्र

08 November 2020

कलम...



वो लिखती है जो में चुनती हूं
कुछ लम्हे कलम संग बुनती हूं
ये मेरी सासे मेरी कलम से है,
दोस्त है मेरी ये मुझे समझती है
कलम पर जोर नहीं किसी का भी
ये सिर्फ हालत को लिखती है।।

ख़ुशी हो या गम हो 
कलम तो कलम है वो कहा रूकती ,
धूप - छांव इस जिंदगी की 
कलम खूब समझती है ।।

हर लम्हा मेरा मेरी कलम 
कागज़ पर बुनती है ,
मैं कहा हूं अकेली, कलम है
 मेरी पक्की सहेली 
ना थकती ना रूकती कभी 
मेरी भावनाओं को समझती है।।

कुछ तो है कलम की तागत 
जो चुपचाप काम करती है
तलवार जो ना कर सके 
इसकी स्याही बार करती है।।

ना समझना कम कीमत का इसे
ये हर किसी को कहा मिलती है
राजनेताओं की किस्मत भी
रोज कलम ही बदलती है।।

भाव यह मेरा है मेरी कलम ही
मेरी शक्ति है , पहचान है कलम से
 यह   मेरे ह्रदय में बसती है।।
प्रतिभा दुबे की कलम से....

                                      प्रतिभा दुबे "अभिलाषी"


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