साहित्य चक्र

07 November 2020

"पाखंड"



अब पृष्ठ्भूमि कर कुप्रथा, लिखता  मुक्तक खूब!
राज  धरम  नित   डूबता,  लोग कहेै  कवि मूढ़!

सब  कहे कवि  मूढ़ महा,  है कलयुग कि  रीती,
राज  कहत  साँच  बिना, जग की   कैसी बीती!

काम  क्रोध  उर लोभ धरि, मठ पूजा करि आड़,
गरल  पान  दुरजन करै , करत  साँच  निष्प्राण!

कहहि  राज  साहब  सुनो,     दूर  करो  पाखंड,
मन  मंदिर  सच  फाग करो,   नेह करो  नित रंग!

सत्य वचन और ज्ञान सब,  सज्जन  को है प्यारा,
लेकिन  इनसे  दूर  है,     मठ  मस्जिद  गुरुद्वारा!

राज    कहत  संसार   की,     बातें   मानो   जब,
स्व विवेक   से   पुस्ट   होवे,     बातें  मानो  तब!


                                                  राजकुमार मिश्रा

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