साहित्य चक्र

01 May 2017

* एक मई का महत्व *

                                 " मैं मजदूर हूं, मजबूर नहीं,यह कहने मैं मुझे कोई शर्म नहीं।
                                    अपने पसीने की खाता हूं, मैं मिट्टी को सोना बनाता हूं "।।


  
एक मई यानि मजदूर दिवस...। मजदूर का मतलब गरीब नहीं होता..। बल्कि मजदूर का मतबल वह इकाई होता है। जो हर सफलता का अभिन्न अंग है। चाहे फिर वो ईट और गारे में सना इंसान हो या फिर किसी ऑफिस के फाइल्स के बोझ के तले दबा एक कर्मचारी..। हर वो इंसान जो किसी व्यक्तिगत संस्था के लिए काम करता है, और बदले में पैसे लेता है। वो सब इंसान मजदूर हैं। 
मजदूर दिवस की शुरूआत अमेरिका के शिकांगो शहर से सन् 1886 से हुई। जब मजदूरों ने अपने काम को लेकर आवाज उठाई। अमेरिका में 1886 से पहले मजदूरों से 12-15 घण्टे तक काम करवाया जाता था। जिसके बाद मजदूर जागरूक हुए और अपने काम के घण्टों को लेकर आवाज उठाई। इसके बाद यह फैसला लिया गया, कि अब मजदूर 8 घण्टे ही काम करेगें। तभी से विश्व श्रम दिवस मनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। जिसे आज लगभग 80 से अधिक देश मनाते हैं।
मजदूर ही देश का निर्माता है, मजदूर ही देश का निर्देशक है। मजदूर के बिना किसी भी देश का निर्माण संभव नहीं है। चाहे वह देश कितना ही धनी क्योंं ना हो..। मजदूर का देश के निर्माण में अहम योगदान रहता हैं। चाहे उद्योग हो या फिर किसी व्यक्तिगत संस्था में काम करना। देश के विकास में मजदूर का अहम योगदान रहता है। मजदूरों के बिना किसी भी राष्ट्र का निर्माण करना असंभव है। 
वैसे अगर हम बात करें...अपने देश कि, तो हमारे देश में 1 मई का इतिहास बड़ा ही महत्व रखता है। जहां 1 मई 1923 से देश में मजदूर दिवस की शुरूआत चैन्नई से हुई। वहीं इस दिवस की शुरूआत भारतीय किसान पार्टी के नेता "सिंगरावेलू चेटयार" ने की। जिसके बाद इस दिवस को विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाना शुरू कर दिया गया। वहीं 1 मई को देश के सिख समुदाय के लोग " भाई लालो दिवस " के तौर पर भी मनाते हैं। साथ ही 1 मई को महाराष्ट्र दिवस भी मानाया जाता हैं। जिस दिन महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई थी। 



हमारे देश में 1 मई का इतिहास सबसे अलग है। जहां एक मई को मई दिवस के रूप में मनाते है। तो वहीं पूरे विश्व में इसे विश्व श्रम दिवस के                                             रूप में मनाते है। 
मजदूर दिवस मजदूरों का दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिवस भी माना जाता है। अगर हम भारत की बात करें तो हमारे देश में मजदूरों के साथ आज भी अन्याय और उनका शोषण किया जाता है। जहां हमारे देश के कानून में मजदूरों से 8 घण्टे काम करने का कानून है। तो वहीं प्राइवेट कंपनियां 12-12 घण्टे काम करवाती है। जो एक चिंता का विषय है। वहीं अगर सरकारी दफ्तरों की बात करें, तो कानून सिर्फ यहां लागू होता दिखता है। वहीं बिरोजगारी दिन पे दिन बढ़ती जा रही है। जिससे मजदूरों का शोषण होता है। जिसके लिए सरकार को मजदूरों के लिए नए कानून बनाने चाहिए। वहीं देश में बाल मजदूरी और बंधुआ मजदूरी भी विषम चिंता का विषय है। गरीब-मजबूरों मजदूरों का शोषण आम बात हैं। वहीं लैंगिक भेदभाव भी मजदूरों में आम बात हैं। जहां महिलाओं के मुकाबले पुरूषों को ज्यादा वेतन दिया जाता है। जो यह दर्शाता है, कि हमारे देश में मजदूरों की स्थिति आज भी दैनीय हैं। 



                                                             रिपोर्ट- दीपक कोहली

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