साहित्य चक्र

30 March 2024

कविताः फुर्सत





फुर्सत ना मिली ।
कभी खुद से मुलाकात होती। ।
मैं सुनता ही रहा सबकी।
काश !कभी खुद से भी बात होती।

 फुर्सत ना मिली कभी खुद से मुलाकात होती।
जिंदगी ने उम्मीदों की एक लंबी लिस्ट थमा  डाली।
मैंने भी समझौतों से हर बात बना डाली।
फुर्सत ना मिली.....
काश! एक उम्मीद खुद से भी की होती।
अपाहिज सपनों को लेकर जिंदगी
आज इस तरह ना चली  होती।

फुर्सत ना मिली कभी खुद से मुलाकात होती।
वो जिन के लिए फुर्सत से खुद को भूल गया।

उनको फुर्सत ना मिली सोचने की ,
 कि उनके लिए तुमने क्या किया।

आज फुर्सत से खुद से मिला तो जाना।
बस अपना साथ ही साथी है।
बाकी  सब तो था.... बहाना।


                                                             - प्रीति शर्मा 'असीम' 


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