साहित्य चक्र

10 February 2024

क्या विपक्ष को चुनावों का बहिष्कार करना चाहिए ?

भारत में इस साल लोकसभा चुनाव होने वाले है। चुनाव से पहले सत्ता पक्ष के कई नेता पूरे विश्वास के साथ चुनाव जीतने की बात कह चुके हैं। ऐसे में सवाल उठते है कि इतने विश्वास के साथ सत्ता पक्ष के नेता क्यों अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। क्या सत्ता पक्ष के पास ऐसी को व्यवस्था है कि उन्हें हराया नहीं जा सकता है ? सत्ता पक्ष का विश्वास कही ईवीएम तो नहीं है। ईवीएम को लेकर देश की सभी पार्टियां समय-समय पर सवाल उठाती रही है। अगर सत्ता पक्ष के पास ईवीएम के रूप में चुनाव नहीं हारने का हथियार है तो फिर क्यों ना विपक्ष को आम चुनावों का बहिष्कार करना चाहिए



सत्ता पक्ष के पास अपार धन और संसाधन है। विपक्ष की पार्टियां आर्थिक ही नहीं बल्कि संसाधनों से भी कमजोर होती जा रही है। और सत्ता पक्ष आए दिन विपक्षी दलों के नेताओं के घर ईडी, सीबीआई और इनकॉम टैक्स के छापे मार रही है। सत्ता पक्ष ने विपक्ष के सभी बड़े नेताओं के घर छापे मारी की है। जिसके कारण कई नेता सत्ता पक्ष के साथ भी गए है। जिसमें अजीत पवार, ज्योतिराधित्य सिंधिया आदि नेता शामिल हैं।


सत्ता में बैठी भाजपा वर्तमान में सत्ता के नशे में पूरी तरह चूर है। कभी संसद से विपक्ष को निलंबित कर देना, तो कभी किसानों के विरोध में नये कानून ले आना इसका एक जीता जागता उदाहरण है। बेरोजगारी, महंगाई जैसे सरकार विरोधी शब्दों का उच्चारण करने मात्र भर से कई पत्रकारों की नौकरी तक चली गई है। आज मीडिया सरकार से सवाल पूछने से डरता है, जो भारतीय लोकतंत्र को धीरे-धीरे खत्म कर रहा है।


विपक्षी दलों के पास सत्ता पक्ष का मुकाबला करने के लिए ना कोई बड़ा चेहरा दिखाई देता है, ना कोई मुद्दा और ना ही कोई बड़ी एकता दिखाई देती है। ऐसे में विपक्ष के पास ईवीएम द्वारा होने वाले आम चुनाव का बहिष्कार करने के अलावा कोई अच्छा विकल्प नहीं दिखाई देता है। विपक्ष को ईवीएम के विरोध में देश-भर में एक व्यापक मुहिम चलाने की जरूरत है। जिससे आम जनता को जागरूक कर सत्ता पक्ष के हथियार ईवीएम पर हमला किया जा सकता है।

सत्ता पक्ष की मनमानी जब तक देश की जनता नहीं समझ जाती, तब तक विपक्ष को खड़ा नहीं किया जा सकता है। विपक्ष को सच में लोकतंत्र बचाने की लड़ाई लड़नी है, तो गांव-गांव, गली-गली जाकर ईवीएम के विरोध माहौल बनाने की जरूरत है। सोशल मीडिया पर लिखने और बोलने से लोकतंत्र नहीं बचता, बल्कि जमीन पर उतर कर संघर्ष करना होता है। और अपने स्वार्थों को एक संदूक में बंद कर समंदर में धकेलना होता है।


  - दीपक कोहली


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