साहित्य चक्र

10 February 2024

कविताः नश्वर तन



तन की जितनी सेवा कर लो
मिट्टी में मिल जाएगा
ज़र जोरू ज़मीन धन वैभव 
कुछ भी साथ न जाएगा

खोया रहा मोह माया में 
करता रहा समय बर्बाद
काया को वह भी बचा न सकी
जिसके लिए किया सब कुछ त्याग

तिनके की तरह उड़ गई काया
काम न आई तेरी माया
जाना पड़ा खाली हाथ
कुछ भी साथ नहीं ले पाया

जीते जी अपने हाथों से 
भला किया न कोई काम 
रहा जवानी के नशे में चूर
काया का क्यों इतना गुमान

नश्वर तन और नश्वर मन को
छोड़ के सब को जाना है
जिसका जितना साथ लिखा है
उतना ही साथ निभाना है

माया ने था जाल बिछाया
मानव उसमें फंसता आया
अंत समय में जल गई काया
दूर खड़ी मुस्काये माया

न माया न काया तेरी
यह सब है इक राख की ढेरी
साथ गई न एक भी पाई
जो कहते थे मेरी मेरी


                                 - रवीन्द्र कुमार शर्मा



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