फुर्र हो गई सर्दी रानी, आया मार्च खतम कहानी।
बढ़ने लगा सूरज का ताप, अब न आती मुंह से भाप।।
थर्र-थर्र नहीं कांपता तन, प्रफुल्लित रहता है मन
कुहरा-धुंध गये सब संग, अब आई होली खेलें रंग ।।
फूल खिले हैं चारों ओर, खग गाते जब होती भोर।
तितलियां उड़कर आती, फूलों के ऊपर मंडराती ।।
मन में भरकर के उमंग, होलिका दहन करते संग।
मिष्ठान खा लगाते टीका, भरपूर मनोरंजन जी का।।
लाते तरह-तरह के रंग, खूब खेलते संग-संग।
गाते-नाचते मिलकर, बनाते पकवान घर-घर।।
खुद खाते और खिलाते, बधाई देने घर-घर जाते।
बर्फी गुजिया पेड़े बाल, चेहरे दिखते पीले-लाल।।
छोड़ के पीछे शर्म-लाज, खेलते गाते नाचते आज।
हो जाते सब चेहरे ऐसे, कभी न देखा इनको जैसे।।
धर्म-संप्रदायों की जो खाई, होली तीज करती भरपाई।
बहती है समरस की धारा, वातावरण मनमोहक सारा।।
- डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
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