साहित्य चक्र

29 June 2017

अजीब दास्तां...।

अजीब दास्तां है...। ये जिदंगी...।
कोई सुलझाता रहता है...तो
कोई उलझता रहता है..।।

अजीब दास्तां है ...। ये जिदंगी...।
कोई पढ़ लेता है...तो 
कोई पढ़ने में रहता है..।।

अजीब दास्तां है...। ये जिदंगी...।
कोई रोता रहता है...तो
कोई रूलाता रहता है...।।

अजीब दास्तां है...। ये जिदंगी...।

                      कवि- दीपक कोहली

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