साहित्य चक्र

12 March 2023

"वर्तमान संयुक्त परिवार, और बिखरते रिश्ते"


एक समय था जब लोग परिवार में रहना पसंद करते थे, लोगों की संपन्नता का अंदाजा उनके परिवार की एकजुटता के आधार पर लगाया जाता था, परिवार में वैचारिक मेल मिलाप के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी प्रतिष्ठा बनी रहती थी। परिवार के धनी व्यक्ति की बिरादरी में विशेष इज्जत होती थी, और ऐसे लोग ही पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करते थे बड़े परिवार का मुखिया पूरे समाज का मुखिया बनकर सामने आता था, तथा उसकी बात ही सर्वमान्य होती थी संयुक्त परिवार के उस दौर में परिवार के रिश्तो के बीच एक विशिष्ट अपनापन प्रेम और सम्मान का माहौल होता था, इन संयुक्त परिवार का फायदा पूरे समाज को मिलता था, समस्त समाज मिलकर राष्ट्र को एक सूत्र में बांँधने का संदेश देते थे। 





उस समय पूरा मोहल्ला और पूरा गांँव एक परिवार की तरह एक दूसरे के साथ हर परिस्थितियों में खड़े रहते थे, मोहल्ले में अगर कोई बुजुर्ग होता था तो वहांँ सब का बुजुर्ग माना जाता था किसी भी परिवार का दामाद, पूरे गांँव का दामाद हुआ करता था। तात्पर्य यह है कि, आपसी प्रेम से सभी मिलजुल कर रहते थे तथा एकजुटता का संदेश देते थे। 

लेकिन वर्तमान समय की बात करें तो सब कुछ सपना सा लगता है, अब ना परिवार रहे ना वैसे मोहल्ले ना गांँव! परिवार छोटे हो गए सबकी अपनी स्वयं की दुनियाँ जिसके अंतर्गत बाहर का कोई भी व्यक्ति जुड़ा नहीं होता है, पहले लोग परिवार के लिए जीते थे पर आज बात स्वयं पर आकर टिक गई है, जिम्मेदारी के नाम पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी बीवी बच्चों के लिए जीना उचित समझता है, जिम्मेंदारी के नाम पर यदि परिवार के किसी अन्य सदस्य को मदद की आवश्यकता पड़ने पर उसे वह बोझ लगने लगता है, सहायता आर्थिक हो या मानसिक उसी समय खराब करना लगने लगा है, जिंदगी बस इसी उधेड़बुन में लगा देता है कैसे अपने बीवी बच्चे को ज्यादा से ज्यादा सुविधायें दे सके , समाज में आजकल प्रतिष्ठित व्यक्ति की यही परिभाषा है।

जीवन के लिए संघर्ष करता व्यक्ति आज रिश्तों को भूलता जा रहा है रिश्ते जो बिखरने से पहले भावनात्मक लगाव अथवा जुड़ाव उदाहरणार्थ कभी अपने मामा, कभी चाचा, कभी ताऊ, सहायता की अपेक्षा रखना निराधार होता जा रहा है। यह रिश्तें कहीं आर्थिक बोझ ना बने इसी डर की वजह से वह अपनों से दूर होता जा रहा है। 

आज का व्यक्ति सिर्फ अपनी जिंदगी जी रहा है उसे दूसरे रिश्तो में झांँकने से डर लगने लगा है, सारी दुनियाँ की खबर गूगल से रखता है, या  टेलीविजन से, पर पड़ोसी का हाल क्या है उसे नहीं पता होता है। आलम यह है कि, लोग दिनदहाड़े अपने घरों में अंदर से ताला लगाकर कैद होकर रह रहे हैं और कहते हैं जमाना बदल गया है, पर कभी यह नहीं सोचा जमाना बदला किसने ?

आज जरूरत है इन तालो को तोड़ने की, साथ ही अपने दिलों में एक रोशनदान की जिससे आपको पता रहे आपके मोहल्लें में शायद किसी को आपकी जरूरत भी पड़ सकती है। औपचारिकता के आधार पर आपको अपने घर परिवार मोहल्ले गांँव में घट रही घटनाओं और लोगों से जुड़े रहना चाहिए, हमें अपने संस्कार नहीं भूलना चाहिए अपनी परंपराओं को लेकर चलना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। याद रखिए विकास करना बुरी बात नहीं है पर स्वयं का विकास करते करते घर से परिवार से रिश्तो से समाज से दूर हो जाना नासमझी है समझदार बने ,और संयुक्त परिवार और मोहल्ले के महत्व को समझे ताकि आने वाले समय में हमारी अगली पीढ़ी को कह सके कि हांँ! हमने भी आपके लिए एक सुखी समृद्ध और विकसित भारत छोड़ा है।


                                              - रत्ना मजूमदार


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