औरत ने जिस दिन
शराफत का पर्दा गिरा दिया
उस दिन वो सारी बेड़ियाँ
जो उसने पाजेब समझकर पहन रखी है
टूट जायेंगी
उस के आक्रोश में
बह जायेंगी
वो सारी परम्परायें
जो उसने माथे पर
सिंदूर समझ कर सजा रक्खी हैं
उस दिन जन्म लेगी
नयी सभ्यता
जिसमें प्रेम, शांति, करूणा, न्याय
एवम् धैर्य के साथ
सूत्रपात होगा नयी मानवता का
जो उद्भव से लेकर अंत तक
होगी यथार्थ, शाश्वत!
- रवींद्र कुमार
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