साहित्य चक्र

12 March 2023

कविताः औरत





औरत ने जिस दिन

शराफत का पर्दा गिरा दिया

उस दिन वो सारी बेड़ियाँ

जो उसने पाजेब समझकर पहन रखी है

टूट जायेंगी

उस के आक्रोश में

बह जायेंगी

वो सारी परम्परायें

जो उसने माथे पर

सिंदूर समझ कर सजा रक्खी हैं

उस दिन जन्म लेगी

नयी सभ्यता

जिसमें प्रेम, शांति, करूणा, न्याय

एवम् धैर्य के साथ

सूत्रपात होगा नयी मानवता का

जो उद्भव से लेकर अंत तक

होगी यथार्थ, शाश्वत!



- रवींद्र कुमार




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