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"पापा बदल गए हैं"
राम प्रसाद जी आज ही वृद्धाश्रम में रहने आए थे। उन्होंने कमरे में अपना सामान रखा। सामान के नाम पर वो एक चटाई लेकर आए थे, एक बक्सा और एक थैला। बक्से का ताला लगा हुआ था। थैले में एक लौटा था, एक फूलों की माला, उनकी पत्नी की, फ्रेम की हुई एक फोटो और उनकी डायरी। कमरे में, पलंग के पास रखे स्टूल पर उन्होंने अपनी पत्नी की फोटो रखकर उसे फूल माला पहना दी। लौटा उसके सामने रख दिया और डायरी तकिए के पास रख दी। बक्सा पलंग के नीचे रख दिया और कार्यालय की और चल दिए। मैनेजर ने उनसे आवेदन पत्र भरकर जमा करने को कहा और उनके परिवार के विषय में पूछा। आवेदन पत्र भरने के बाद उन्होंने बताया कि उनके परिवार में उनकी पत्नी उनके साथ रहती थी, जो अब भगवान को प्यारी हो गई है। बेटा कई सालों से विदेश में नौकरी करता है। अपने परिवार के साथ वहीं रहता है। कॉरोना के चलते अपनी मां के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाया लेकिन स्थितियां सामान्य होते ही उनसे मिलने आएगा।
मैनेजर को उनकी बात सुनकर हंसी आ गई लेकिन फिर उदास हो गया। रामप्रसाद जी के पूछने पर उसने बताया," सर यहां आने वाले सभी बुजुर्ग आने के समय यही कहते हैं कि उनके बच्चे व्यस्त रहते हैं लेकिन उनसे मिलने आएंगे जबकि वो सभी इस बात को जानते हैं कि उनके बच्चों की बेरुखी के चलते ही उन्हें वृद्धाश्रम आना पड़ा है, वरना हंसी खुशी कौन अपना घर छोड़कर आता है यहां रहने।"
आपने जब कहा कि जल्द ही आपका बेटा आएगा, तो मुझे हंसी आ गई लेकिन जब लगा कि आपकी इच्छा अधूरी रह जाएगी तो मैं उदास हो गया। रामप्रसाद जी मुस्कुराकर बोले," लेकिन मेरा बेटा ज़रूर आएगा।" मैनेजर ने, आत्मविश्वास से भरे उनके चेहरे की ओर देखा और फिर सिर झुकाकर अपने काम में व्यस्त हो गया। रामप्रसाद जी अभी कार्यालय में ही थे, मैनेजर के सामने आकर बोले," मैं पढ़ा लिखा हूं, कार्यालय के कामों में तुम्हारी मदद कर सकता हूं, यदि तुम्हे उचित लगे तो।" मैनेजर ने फिर आश्चर्य से उन्हें देखा," सर, यहां आकर सब अपने परिवार वालों को याद करते रहते हैं, उनके ही बारे में बात करते रहते हैं, काम में मदद करने के बारे में तो कोई सोचता भी नहीं। आप तो आज ही आए हैं, अभी से काम करने के बारे में सोच रहे हैं।" रामप्रसाद जी ने उत्तर दिया," मुझे खाली समय बिताना बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए तुम्हारे पास चला आया। पत्नी चली गई है,भगवान के पास। बेटा कई सालों से विदेश में रहता है, अपने परिवार के साथ। याद किसको करूंगा बेटा?" मैनेजर उनके जवाब से काफी प्रभावित हुआ। उसने तुरंत उन्हें काम समझा दिया। रामप्रसाद जी की दिनचर्या नियमित हो गई।
सुबह नहा धोकर, पूजा करके, कार्यालय आ जाते और पूरा दिन वहीं पर काम करते। शाम को कार्यालय बंद होने पर अपने कमरे में आ जाते। अपने साथ रह रहे दूसरे बुजुर्ग लोगों से बातचीत करते, थोड़ी देर कुछ पढ़ते और अपनी डायरी में कुछ लिखकर सो जाते।
उन्हें वृद्धाश्रम आए हुए एक महीना हो चुका था। मैनेजर ने एक दिन उन्हें याद दिलाया कि उनका बेटा अब तक नहीं आया उनसे मिलने। रामप्रसाद जी ने काम करते करते उत्तर दिया," इसी महीने की पच्चीस तारीख को आएगा।" पच्चीस सितंबर को कार्यालय में अत्यंत आधुनिक वेशभूषा पहने, एक आकर्षक युवक ने प्रवेश किया। उसने अपना परिचय विनय प्रसाद कहकर दिया। मैनेजर के पूछने पर उसने बताया कि वह रामप्रसाद जी से मिलने आया है। रामप्रसाद जी, नजरें झुकाए अपने काम में व्यस्त थे। मैनेजर ने उन्हें बुलाया तो विनय के सामने आकर बैठ गए। विनय के कुछ बोलने से पहले ही उन्होंने उसे बताना शुरू किया," तुमने आने में बहुत देर कर दी बेटा, मैंने सब कुछ इस वृद्धाश्रम के नाम कर दिया है।" विनय ने गुस्से से उन्हें देखा, कुर्सी से खड़ा हो गया। " आपका मैसेज पढ़ा था मैंने। आपकी संपत्ति में मेरा भी हिस्सा है, आप मेरा हिस्सा किसी को नहीं दे सकते। मैं कोर्ट तक जाऊंगा अपने हक के लिए।" रामप्रसाद जी की आंखे नम हो गई लेकिन कमजोर नहीं पड़े। " कोर्ट में जाने के लिए अपने देश में आना पड़ेगा बेटा। अच्छा ही है, तुमसे मिल तो सकूंगा। तुम्हारी मां तो तुमसे मिलने की इच्छा मन में लिए ही चली गई। तुम्हे समय नहीं मिल पाया। संपत्ति के लिए ही सही तुम्हे समय तो मिलेगा।" विनय ने नफरत से उनकी और देखा और पैर पटकता हुआ बाहर चला गया।
अर्चना त्यागी