राजनीति का अटल पुरोधा, भारत का अनमोल रतन।
भारत-मां की सेवा में वो करता रहा हर एक यतन।
अटल सत्य ये अटल बिहारी में सबका विश्वास रहा।
पक्ष-विपक्ष रहा हो लेकिन, सबके दिलों में वास रहा।
अडिग,अटल विश्वास तुम्हीं पर इंद्रा जी ने तुम्हें चुना।
तुम्हें पठाया था विदेश में, भारत मां का दूत बना।
अचल,अटल अविराम रहे,मेधा अमित,अनन्त विशाल।
अर्पण,तर्पण चन्दन से किया भारत मां का उन्नत भाल।
तोड़ निरंकुशता सत्ता की, एक नया इतिहास रचा।
पाषाणों में फूल खिलाया जन-जन में विश्वास जगा।
चारों खाने चित्त हुए तब एक अटल की बोली में।
और हड़कंप मचा ड़ाला तब गद्दारों की टोली में।
भारत डरता नहीं किसी से, पोख़रण में बतलाया।
किया परिक्षण परमाणु ,भारत का लोहा मनवाया।
जी भर जिया शान से जीवन,दिया पंक में कमल खिला।
भारत मां को किया समर्पित,घट को जब तक श्वांस मिला।
जान फूंक दे पाषाणों में ऐसी रच डालीं कविता।
संघर्षों से रार ठान कर, किया सुसज्जित अस्मिता।
व्यथित किया हृदय पीड़ा ने, मुश्किल में भारत-शुचिता।
लिख दी तुमने काल कपाल पर,कालजयी अनुपम कविता।
जब तक जिया राष्ट्र की खातिर, नहीं कभी विश्राम लिया।
अनुकरणीय दीर्घ यात्रा को फिर, तुमने अटल विराम दिया।
राजश्री
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