साहित्य चक्र

30 December 2020

‘तुम इतना क्यों बदल गये'




याद करती हूँ जब भी तुम्हें,
टीस सी उठती है मन में।  

अपने आप में मैं तो खुश थी, 
जाने तुम क्यों आ गए जीवन में? 
करते थे कैसी मीठी - मीठी बातें, 
यूँ ही बातों में बीत जाती थी रातें। 

कैसे जगह बना गये थे तुम दिल में, 
वादों की दी थी न जाने कितनी सौगातें। 

कभी-कभी बात करते तुम शरमाते, 
कभी अपनी बातों में मुझे भी उलझाते। 

करते प्यार भरी बातें बहुत मगर, 
बातों बातों में दुनियादारी भी समझाते। 

कभी-कभी सोचती हूँ कि अचानक, 
फिर तुम इतना क्यों बदल गये? 
प्यार भर कर मेरे दिल में अपना,
जाने किस राह पर तुम निकल गये। 

सुनो, तुम्हें सोच कर आज भी, 
चेहरे पर मुस्कान रहती है मेरे। 

सुन लूँ तुम्हें एक बार है यही ख़्वाहिश, 
तोड़ दो अब तो यह खामोशी के घेरे।

                                                       कला भारद्वाज


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