साहित्य चक्र

31 December 2023

पढ़िए 16 कविताएं एक साथ...



फिर आ गया नया साल

आ गया फिर अब देखो नया साल 
दे गया खट्टी मीठी कुछ यादें बीता कल
ऐसी तबाही मचाई थी कुदरत ने
डर के साये में बीता था हर लम्हा हर पल

भारी बरसात में कुदरत ने जो मचाई थी तबाही
खंडहर देते रहेंगे जीवन भर उसकी गवाही
समय तो मरहम लगा देगा हर जख्म पर
भूलेंगे कैसे वो जिन्होंने खोये परिवार माँ बाप भाई

डूबा देश पीड़ा में उपद्रवियों ने मणिपुर जलाया
सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बना इतिहास रचाया
जी20 का सम्मेलन करके भारत का लोहा मनवाया
क्रिकेट विश्व कप में भारत को ऑस्ट्रेलिया ने हराया

एक ऐतिहासिक पल भी आया इस वर्ष
जब चंद्रमा पर उतरा भारत का चंद्रयान
पूरा विश्व चकित होकर देखता रह गया
इसरो के वैज्ञानिकों की यह अद्भुत उड़ान

धारा 370 पर सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया
देशप्रेमी तो खुश हुए पर कुछ को रास न आया
नव वर्ष में होंगे देश में लोकसभा के चुनाव
सत्तापक्ष को चुनौती देने विशाल गठबंधन बनाया

करें स्वागत नव वर्ष का दिल खोल कर
मन में न रखें ईर्ष्या द्वेष न कोई मलाल
रहना पड़ेगा सबको वैसे ही जैसा समय चाहेगा
घुट घुट के जियें या रहें खुशहाल

                                                   - रवींद्र कुमार शर्मा

*****


नया साल नयी आशा
नया साल आ रहा है,
नयी आशा ला रहा है,
नए सपने मन को लुभा रहे है,
लगता है कुछ नया होने वाला है,
ठण्ड बढ़ती जा रही है,
चारो तरफ नए साल की धूम है,
अमीरो अपना नया साल होटल में मनाते हैं, 
गरीबो के लिए हर दिन एक जैसा होता है, 
नयी आशा यही है की दूरी मिट जाएगी,
नया साल नयी आशा लेकर आया है,
प्यार का रंग होगा देश में,
सबके चेहरे पर होगी ख़ुशी,
आने वाला साल ख़ुशी अपार लाये,
ढेरो सौगात लाये हम डूब जाये उन खुशियों में,
नफरत की दीवार न रहे सबके बीच में,
नयी ऊर्जा का प्रकाश हो,
हर कोई मस्त हो नए साल में,
कोहरे में लिपटी जिंदगी है, 
नए साल का इंतजार कर रही है,
नया साल नया खुशियाँ ला रहा है,

                                                     - गरिमा

*****

नया वर्ष

नया वर्ष नया पैगाम लाया है।
नफरत नहीं मोहब्बत का
एहसास लाया है।
नया वर्ष नया जुनून लाया है।
हार नहीं जीत का
ख्वाब लाया है।
नया वर्ष नई बहार लाया है।
खिलती नहीं जो कलियां
उनको फूल बनाने आया है।
नया वर्ष नया इतिहास लाया है।
मिला नहीं जो आज तक
उसकी आशीष लाया है।
नया वर्ष नया अंदाज लाया है।
बिखर चुके है जो जज्बात
उनका हिसाब लेने आया है।

                                              - डॉ.राजीव डोगरा


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करिये नव उत्कर्ष

मिटे सभी की दूरियाँ, रहे न अब तकरार।
नया साल जोड़े रहे, सभी दिलों के तार।।

बाँट रहे शुभकामना, मंगल हो नववर्ष।
आनंद उत्कर्ष बढ़े, हर चेहरे हो हर्ष।।

माफ करो गलती सभी, रहे न मन पर धूल।
महक उठे सारी दिशा, खिले प्रेम के फूल।।

गर्वित होकर जिंदगी, लिखे अमर अभिलेख।
सौरभ ऐसी खींचिए, सुंदर जीवन रेख।।

छोटी सी है जिंदगी, बैर भुलाये मीत।
नई भोर का स्वागतम, प्रेम बढ़ाये प्रीत।।

माहौल हो सुख चैन का, खुश रहे परिवार।
सुभग बधाई मान्यवर, मेरी हो स्वीकार।।

खोल दीजिये राज सब, करिये नव उत्कर्ष।
चेतन अवचेतन खिले, सौरभ इस नववर्ष।।

आते जाते साल है, करना नहीं मलाल।
सौरभ एक दुआ करे, रहे सभी खुशहाल।।

हँसी-खुशी, सुख-शांति हो, खुशियां हो जीवंत।
मन की सूखी डाल पर, खिले सौरभ बसंत।।


- डॉ सत्यवान सौरभ


*****

नय नया साल आया है

इंतेज़ार तेरा है कि 
नया साल आया है, 
आ भी जाओ कि फिर
दौरे जाम आया है, 
वाइज़ सभी चल दिये 
जानिब ए मैखाना , 
हमको मगर बस तेरा 
ही ख्याल आया है, 
सजने लगी महफ़िलें 
के नया साल आया है, 
बता हमारे लिए भी क्या
कोई इंतेज़ाम आया है,
साल आया है खुशियों में 
डूबा डूबा हर शख़्श
नज़र आता है, 
क्यों न हो उम्मीदों का 
जो नया साल आया है , 
हर कोई मुब्तिला है, यहां,
नए साल की खैर आमद में,
वो भी ,आ गए मुश्ताक़ , 
ख़्याल मेरा उनको आया है । 


                                            - डॉ. मुश्ताक अहमद शाह 

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वो इंकलाब के शोर को इस तरह दबा रहा...
वो इंकलाब के शोर को इस तरह दबा रहा है
जैसे नई नवेली भोर को कोहरा मिटा रहा है
अब खौंफ निगाहों में दस्तक दे रहा है उसकी
मानो तख्त ए बादशाहत कोई रोज़ हिला रहा है
वो इंकलाब के शोर को इस तरह दबा रहा...
बड़ी अच्छी है साजिश तेरी अब न चलेगी
झूठी है ये गुजारिश तेरी अब न चलेगी
अवाम उम्दा अदायेगी से वाकिफ हैं हर तरह
तू आंख से आंसू नहीं पानी बहा रहा है
वो इंकलाब के शोर को इस तरह दबा रहा...
काफ़िर कभी रस्म को सादगी से निभा ले
हुजरे में बीता रात बिछौना धरती बना ले
फितरत में उसकी शुमार है विलासता इस कदर
जो लोगों में खुदको फकीर बता रहा है
वो इंकलाब के शोर को इस तरह दबा रहा...

- नरेन्द्र सोनकर बरेली


*****

प्रेम
प्रेम अहसास है दिलों का,
जवाब है मुश्किलों का,
ज़रूरत है संसार की,
तपस्या है इंतज़ार की,
आरज़ू ख़ुश देखने की,
चाहत बस मिलने की,
समर्पण है सम्मान का,
दर्पण नव निर्माण का,
बंधन सच्चे रिश्ते का,
साथ किसी फरिश्ते का,
जिज्ञासा है विचारों की,
उम्मीद है नए सवेरे की,
खुशियाँ है अपनेपन की,
पहचान है धड़कन की,
अवसर सजने सवरने का,
उत्साह है कुछ करने का,
भय है तुम्हें खोने का,
कारण है जो रोने का,
साज़ है इस जीवन का,
राज़ है भीगे सावन का,
ज़रिया है नेक बनने का,
जीवन साथी चुनने का,
उमंग है फिज़ाओ की,
तरंग है अदाओं की,
मिसाल है मानवता की,
शुरुआत है सुंदरता की,
आवाज़ है आत्मा की,
इच्छा है परमात्मा की,
आस है और उम्मीद है,
इस जीवन का संगीत है,
आस्था है विश्वास है,
रास्ता है उल्लास है,
बुराई इससे ख़त्म है,
अच्छाई की ओर कदम है,
ईश्वर मन के अंदर है,
प्रेम सत्य है,शिव है,सुंदर है।

- आनन्द कुमार

*****


घड़ी
टिक टिक का राग सुनाती हूँ।
कोई सुने या न सुने मैं बस गाती जाती हूँ।।
सुबह हो या शाम, दिन हो या रात मैं चलती जाती हूँ।
जो मेरी राह पर चले उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचाती हूँ।।
कलाई पर पहने तो कलाई की शोभा बढाती हूँ।
कमरे की दीवार पर लगूँ तो कमरे को चार चांद करती हूँ।।
रूप मेरा छोटा हो या बड़ा।
सबको समय का महत्व बताती बच्चा हो चाहे हो बूढ़ा।।
मेरी खासियत तो सभी है जानते।
जो जानकर भी नहीं समझते वो जरूर है पछताते।।
बच्चे जब भी मेले में है जाते।
खरीदकर मुझे घर जरूर हैं लाते।।
चाहे लोग मुझे पहनना कर दे बंद।
शायद मेरे वगैर लोग नहीं ले सकते जीवन का आनंद।।

- विनोद वर्मा

*****

सामने मंजिल थी,
पीछे थी आवाज उसकी,
रुकते तो सफर छूट जाता,
चलते तो उससे बिछड़ जाते,
मंजिल की भी हसरत थी,
और उससे मोहब्बत भी,
ए दिल यह बता मुझको,
उस वक्त मैं कहां जाता,
मुद्दत का सफर भी था,
और बरसों की चाहत भी थी,
रुकते तो बिखर जाते,
चलते तो दिल टूट जाते,
यूं समझ लो की...
लगी प्यास गजब की थी,
और पानी में भी जहर था,
पीते तो मर जाते,
और ना पीते तो भी मर जाते..

- अभिषेक सक्सेना


*****

शीर्षक - माँ

"माँ", "अम्मी", "आई"
इन सभी पर्यायों में मानो पूरी सृष्टि हो समाई ||
झूठ फरेब सब धोखा और माया है,,
इक मात्र उसके आँचल में मिलती छाया है ||
माँ हैं हमारी प्रथम गुरु,
ईश्वर की रचना प्रथम ,,
संतान के कल्याणार्थ निभाती भूमिका अहम् ,
जीवन में सबसे बड़ा भाग्य है 'माँ' का होना,
माँ की दुआओं से सिंचित होता है घर का कोना-कोना।।
कर्तव्यों और कर्मों से बनी ईश्वर के समकक्ष,
सच्चे दोस्त और साथी सम हासिल कराती लक्ष्य,,
त्याग, सहनशीलता, समर्पणता का हैं सागर,,
ईश्वर सदृश्य प्रेरणा देती इनकी जीवन गागर ||
घुटने-घुटने गिरना-उठना,,
उसकी गोदी में ही सो जाना कई बार ,,
शरारतें करता मेरा बचपन....
माफियां देता उसका प्यार ||
धूप हुई तो आँचल बन कर ,,
कोने-कोने छाई "माँ"...
"धरती", "अम्बर", "आग", "हवा", "जल"
जैसी ही सच्चाई "माँ" ||
घर में झीने रिश्ते मैंने ,,
लाखों बार उधड़ते देखा है...
चुपके-चुपके कर देती है,
जाने कब तुरपाई "माँ" ||
सारे रिश्ते जेठ दुपहरी,,
गर्म हवा, आतिश अंगारे ,,
झरना, दरिया, झील, समंदर,
भीनी सी पुरवाई "माँ" ||
माँ कैसे पढ़ लेती है मीलों दूर से,
अंतः मन की आवाज।
कैसे कहती है हम बच्चों को हमेशा कि,,
जा ऐश कर 'अच्छे हैं हालात' ||
माँ को अपना हर सपना,
अपने बच्चों के अक्श से जीना है ,,
क्यों हम बच्चों का हर दर्द तुझे
'हम' से ज्यादा सताता है ||
"ऐ माँ" तू कैसे टूट कर भी खुश रहती है ,,
तू किस माटी का है आकार ....
इस पूरी सृष्टि में ना मिल सकेगा,
ना कर सकेगा कोई ,
"माँ" तेरे जैसा बिना शर्तों वाला प्यार...||
- सौजन्या

*****

तुम क्या समझोगे

खातिर पेट औरों का भरने ,
भरी दुपहरी में जब ,
कर सिंचित खेत को पसीने से अपने ,
खिलाकर दूसरों को पेटभर ,
भूखे सोना पड़ता है खुद जब ,
मुझ पर क्या गुजरती है ,
तुम क्या समझोगे।
पी सकें दूध बच्चे तुम्हारे ,
हर मौसम में इसलिए ,
चार गाय ,भैंस का लाने ,
जंगल –जंगल भटककर ,
बच्चों को अपने सिर्फ ,
पानी पिलाकर सुलाता हूँ जब ,
हाल मेरा क्या होता है तब ,
तुम क्या समझोगे।
रह सको चैन से तुम ,
ठंड ,धूप और बर्षा में ,
खातिर तुम्हारे आशियाने बनाने ,
कर देता हूँ एक रात –दिन ,
और खुद खुले आसमां तले,
क्या –क्या सह कर सो जाता हूँ ,
तुम क्या समझोगे।
ढो –ढोकर दिन भर ,
तेरे एशो आराम की चीजें ,
सब्जियां ,मिठाइयां ,कपड़े ,
देख – देख सब सीना पसीजे ,
रख दिल पर पत्थर जब ,
खाली हाथ लौट घर आता हूँ ,
मेरे बच्चों पर क्या गुजराती है तब ,
तुम क्या समझोगे।
गटक जाता हूँ तेरे कटु बचनों को प्रसाद समझ जब ,
और तो कहीं देखा नहीं बस ,
भगवान तुम्हीं में पाता हूँ ,
नफरत तेरी देख ,
दिल मसोस कर नजरें नहीं मिलाता हूँ ,
मेरी आत्मा कैसे झकझोर होती है तब ,
तुम क्या समझोगे।
इतना सब सहकर भी ,
भूखा ,नंगा रहकर भी ,
तेरी खातिर ,
गर्मी से झुलस ,ठंड से ठिठुर ,
बाड़ में बह-बहकर भी,
जब मैं तुझे सुख पहुँचाता हूँ ,
कितना संतोष मुझे होता है तब ,
तुम क्या समझोगे।

- धरम चंद धीमान

*****

कर्नल जसवंत सिंह चंदेल कलोल वाले

ना देखे हिंदू ,मुस्लिम ना देखे इन्होंने ईसाई,
सबकी मदद करते दिल खोलकर,
नाम है जिनका कर्नल जसवंत सिंह कलोल वाले,
बन के किसी के साथी,संरक्षक तो किसी के भाई।

थोड़ी सी भी अक्कड़ नहीं स्वभाव में इन्होंने पाई,
दिल खोल कर सहायता करते जरूरतमंदों की,
ऐसा लगता है जैसे जानते हैं ये सब की पीर पराई।

जिस किसी सदस्य से भी पता लगता है इनको,
जरूरत है किसी को किसी प्रकार की सहायता की,
किसी को दो ,तो किसी को चार,तो किसी को 6000 की, 
सहायता राशि है इन्होंने तुरंत भिजवाई।

इतने बड़े रैंक से रिटायर हुए फिर भी,
धेले भर की अक्कड़ नहीं है इनमें,
बिल्कुल सबका अपना बनकर,
गरीबों को है हमेशा सहायता राशि पहुंचाई।

मंजूषा बेटी नहीं सिर्फ इनकी अब,
मंजूषा तो है बेटी अब हम सब ने अपनी बनाई,
हर मां, बहन ,बेटी में दिखती हमको मंजूषा,
हर हाल में सहायता करेंगे हम भी,यह कसम है अब हमने खाई।

दूसरों की सहायता के लिए दान कर रहे,
 आप अपनी मेहनत की पाई– पाई,
धन्य है कर्नल जसवंत सिंह चंदेल कलोल वाले आप,
जो मंजूषा जैसी बेटी अपने पाई।


                                                  - लेफ्टिनेंट जय महलवाल

*****


कुछ अभी बाकी हैं "
मिला कुछ, तो
कुछ अभी बाकी है
सपने पूरे हुए कुछ ,तो
बहुत अभी बाकी है
मिले कुछ ऐसे पराये
जो अपने हो गए ,तो
कुछ अपनाना अभी
अपने को बाकी है
देखा आसमां- जमीं को
बहुत दूर से एक साथ ,तो
देखना अभी उस
क्षितिज को भी बाकी है
सफल पाया खुद को
हमने बहुत से बेड़ियोँ से ,पर
अभी भी बहुत से
इम्तहां देने बाकी है
आएंगे बहुत से मंजिल
लेके बहुत से रास्ते ,पर
उन रास्तो का असर
अभी बाकी है
- फूल कुमारी

*****

प्रेम सहज सुबास रे मन
मन में रह गईं मन की बाते,
बीत गया यह साल रे मन।
मैं तो निशि दिन लिख रही थी,
हिय के नूतन पात रे मन।
फिर क्यों ऐसा लग रहा है,
बात बच गई खास रे मन।
तेरे मन की मैं ही बाचूँ ,
तू मेरा मन बाँच रे मन।
वर्ष भर मैं तो ना समझी,
तू क्यों समझे साँच रे मन।
बाँचते रहना अहर्निश ,
गीत मेरे साथ रे मन।
सखा सखी मेरे हृदय में,
रह रहें है साथ रे मन।
वर्ष भर हृदय प्रफुल्लित,
अमिय कर रसपान रे मन।
जैसे प्रतिपल साथ बीता,
मधुर मधुमय साल रे मन।
बीत जाए सरल सुन्दर,
प्रेम सहज सुबास रे मन।
बीतने वाले पलों में,
स्वयं का अहसास रे मन।
डोर पकड़े है हमेशा,
आ रहा नव साल रे मन।

- स्नेहलता द्विवेदी

*****

किसी सूखती नदी के कूल से बँधी
प्रतीक्षित स्पंदन को,
कागज की नाव मैं
किसी के बीत जाने के क्रम में
बचे चटक उन्मादी से,
चिपके पदचिन्ह मैं
अपनी बीन अपनी रागिनी में
झूमते उछलते पुलकित से,
त्योहारों का शेष भाग मैं
छूटती आसक्ति, ढुलकते वर्ष का
सहते परिचित सा आघात,
स्मृतियों मे विस्मृत मैं
'कहाँ रह गया देने को कम मुझसे?'
स्नेह मधु पर मधुप सा बौराया,
अपनी क्षमताओं पर उठता प्रश्न मैं
अभिनन्दन किया था पाँवड़ी पलकों से जिनका
उनकी उल्टी गिनतीयों की साझी - साक्षी जिसकी अंतिम साँसे,
वो वहीँ ठहरा दिसंबर मैं
यकीन मानो! दिसंबर हो जाना आसान नहीं,
शुभकामनाएँ तुम्हें नव माह, नव वर्ष की
किन्तु! सत्य यह है कि
दिसंबर होना आसान नहीं।

- सुषमा तिवारी


*****


फरवरी और दिसंबर
तुमसे मिलने के मौसम फरवरी थे
हमारे बिछड़ने के दिसंबर
होठों के चुम्बन फरवरी थे
आलिंगन दिसंबर
लाल गुलाब फरवरी थे
पीले टेसू दिसंबर
माथे की बिंदिया फरवरी थी
पैरों के नूपुर दिसंबर
सावन भादों फरवरी थे
उबलते जेठ दिसंबर
त्यौहार सारे फरवरी थे
पीड़ा बन गई दिसंबर
मधुर गीत फरवरी थे
वेणुनाद दिसंबर
कोरे कागज़ फरवरी थे
नीली कलम दिसंबर
प्रार्थनाएं सारी फरवरी थी
प्रतीक्षा बनी दिसंबर
राधा रमण फरवरी थे
खारी यमुना दिसंबर
कृष्ण हमारे फरवरी थे
गाय गोपियां दिसंबर
द्वारिकापुरी फरवरी थी
कुंज बना दिसंबर
कविताएं सारी फरवरी थी
किस्से कहानियां दिसंबर।

- जुवि शर्मा

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