साहित्य चक्र

31 May 2017

सपने...?

                     * सपने *

सपने तो सपने हैं...।
जरूरी नहीं की पूरे हो जाए..।।

सपनों का क्या..। सपने तो, 
हमेशा टूटते रहते है...।।

कभी नींद टूटी, तो कभी सपने टूटे..।।

सपनों का क्या...।।
सपने तो सपने हैं...।
जरूरी नहीं की सपने पूरे हो जाए...।।

         दीपक कोहली

26 May 2017

इंडिया का ओरिगेमी - "आयुष"

नाम - आयुष गुप्ता, पेशा- इंजीनियर और इंडियन ओरिगेमी।  जी हां सही सुना और सही पढ़ा..।। 

उत्तरप्रदेश के बरेली जिले के बड़ी बमनपुरी के रहने वाले है आयुष गुप्ता..। अपनी ओरिगेमा कला के लिए पूरे देश में लोकप्रसिद्ध है। हर अखबार में आयुष छाये हुए है। चाहे दैनिक जागरण हो या फिर हिंदुस्तान...।।

ओरिगेमी कला का माहिर आयुष गुप्ता...। कागजों व पुराने नोटों को एक नया रूप देना आयुष का पेशा है।
होने को आयुष एक इंजीनियर भी है..। देश का नाम रोशन करना आयुष की हिदायत में है। ओरिगेमी कला यानि कागजों को फोल्ड कर उन्हें एक आकृति देना ही ओरिगेमी कला है। वैसे ओरिगेमी शब्द जापान का है। जिसका मतलब होता है। ओरू- फोल्ड और केमी- कागज , पेपर को फोल्ड करना। 

आपको बता दूं..कि आयुष पेशे से एक इंजीनियर है। जो दो बार आईआईटी कानपुर और एक बार आईआईटी गुहावटी में राष्ट्रीय रोबोटिक चैम्पियनशिप जीत चुके है। आयुष बचपन से ही इस ओरिगेमी कला से प्रेरित थे। आयुष अपनी कला से कई रिकॉर्ड दर्ज कर चुके हैं। चाहे अंग्रेजी के शब्द लिखना हो या फिर उर्दू शब्दों को ओरिगेमी कला में संजोना..आयुष की हिदायत में है। आयुष देश के पहले और एक मात्र ऐसे ओरिगेमी कलाकर है, जिनका नाम- "इंडिया बुक रिकॉर्डस" में दर्ज है। मात्र 22 साल में ही आयुष ने यह कारनामा किया है।
आयुष अपनी ओरिगेमी कला से कलाम साहब को भी श्रद्धांजलि दे चुके है। कई राजनायकों और कवियों का भी नाम लिख उन्हें दे चुके हैं।
वैसे यह कला जापान की संस्कृति मानी जाती है। जापान ही इस कला का जन्मदाता है..। इस कला को पेपर फोल्ड कला भी कहते है। इतना ही नहीं यह कला यूरोप के कई देशों में आज भी जाकृति है। इस कला के माध्यम से आयुष पूरे विश्व में अपना लोहा मनवाना चाहते है।    



  • आइये जानते है...आयुष गुप्ता से खास सवालों के जवाबः-


सवालः-  आपको इस कला का ज्ञान कहा से मिला और कैसे मिला..?
जवाबः- मुझे इस कला के बारे में सबसे पहले बचपन में स्कूल में पता चला। जब हम कागज मोड़ कर कुछ बनाने की कोशिश करते थे...। जिससे बाद मैं धीरे- धीरे इस कला के बारे में जानने की कोशिश करने लगा। जब मेरा इंजीनियरिंग का द्वितीय वर्ष था, तब मुझे इस कला का नाम पता चला। तब तक मैं कॉफी आगे निकला चुका था...।।

सवालः- आप एक इंजीनियर है, इसके बावजूद भी आप इस कला में रूचि रखते है। इसका क्या कारण है..?
जवाबः- हां मैं एक इंजीनियर हूं..। लेकिन जरूरी नहीं है, कि मैं इंजीनियर ही रहूं। मुझे अपनी ओरिगेमी कला से एक मुकाम पाना है। मुझे इस कला को पूरे भारत सहित पूरे विश्व में एक नई पहचान देनी है। मैं चाहता हूं कि यह कला हमारे देश ही नहीं पूरे विश्व में एक अलग हुन्नर पैदा करें। जिससे युवाओं में इस कला के प्रति एक नया जोश और जज्बा पैदा हो..। जो इस कला के साथ - साथ हमारे युवाओं के लिए भी बेहतर होगा। आजकल का युवा देखा देखी कर रहा है। जो सरासर गलत दिशा है..। उसे अपने मन की करनी चाहिए....। चाहे वह कुछ भी करें - इंजीनियरिंग करें या फिर डॉक्टरी...।।

सवालः- आपने इतने सारे रिकॉर्ड अपने नाम  किये है। आपको कैसा लगता है..?
दवाबः- मैं कुछ नया और अलग करना चाहता हूं। मुझे रिकॉर्डों से कोई मतलब नहीं हैं। मैं अपने लक्ष्य के लिए काम करूंगा और करता रहूंगा। चाहे मुझे पहचान ना मिले..। मैं पहला और एक मात्र ऐसा ओरिगेमी कलाकर हूं, जिसका नाम "इंडिया बुक रिकॉर्डस" में दर्ज है। जब लोग मेरे से बोलते है, कि आपने तो कई रिकॉर्ड दर्ज किए है। तब मुझे अपने आप पर सम्मान के साथ -साथ गर्व महसूस होता है...।।

सवालः- आप इस ओरिगेमी कला को लेकर क्या कहेंगे..?
जवाबः- ओरिगेमी कला एक बहुत पुरानी कला है। जो जापान से विकसित हुई थी। आज भी कई देशों में ओरिगेमी कला का प्रदर्शन किया जाता हैं। जापान में सबसे ज्यादा ओरिगेमी कला का प्रदर्शन - प्रयोग होता है..।
जापान ही ओरिगेमी का जन्मदाता है..।।

सवालः- आप इस कला को भारत में कैसे आगे लाना चाहिगे..?
जवाबः- मैंने अभी हाल ही में इस कला पर एक बुक लिखी है। जो इस कला को प्रदर्शित करता है। अगर कोई मेरे माध्यम से इस कला को सीखना चाहे, तो मैं उसे सबसे पहले अपनी बुक पढ़ने के लिए बोलूंगा। क्योंकि मैंने अपने सारे अनुभव अपनी किताब में सांझा किए हैं। इस कला को भारत में लाने के लिए मैं दिन-रात काम कर रहा हूं। जो कुछ ही सालों में आपके सामने होगा..।।

सवालः- आप युवाओं से इस कला के बारे में क्या करना चाहोगें..?
जवाबः- ओरिगेमी कला एक अलग और बहुत ही मजेदार है। कागजों और पुराने नोटों को एक अलग पहचान देना ही,  अपने - आप में काफी रोचक हैं...। मैं चाहता हूं कि, मेरे देश का हर युवा इस कला को सीखें और इसे पूरी दुनिया में एक अलग रंग दें..।।

सवालः- आप हमारी पत्रिका के माध्यम से देश को संदेश देना चाहोंगे..?
जवाबः- सबसे पहले मैं.. । जयदीप पत्रिका को धन्यवाद कहना चाहूंगा..। जिसने मुझे आपने मंच पर आमंत्रित किया..। मैं कोई नेता-अभिनेता नहीं, जो देश को संदेश दूंगा..। लेकिन फिर भी दो शब्द कहूंगा..। अपनी मन की करें, और दिल की सुनें..।। मैं एक कलाकार हूं, अपनी कला से ही देश को संदेश दूंगा.और देता रहूंगा..।। धन्यवाद...।।

  

                                                               रिपोर्ट- दीपक कोहली

24 May 2017

* इंसान *

                                        * इंसान *

आखिर क्या है..? इंसान..।। 
अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी और 
कितना भी गिर सकता है। इंसान..।। 
यह मेरे लिए एक नया अनुभव और
 निराला जरूर है... कि इंसान के कई 
रूपों से मेरा परिचय हो चूका हैं..।।
एक रूप और सही...। क्योंकि 
इंसान का जीवन सीखने 
के लिए ही बना हैं।। 
मैं कई बार सोचता हूं..।आजकल इंसान कितना बदल गया हैं...।
जीने का तरीका बदला, 
बदल गई इंसान की जिंदगी...।। 
ना वर्तमान देखता, ना भूत याद करता...। 
बस भविष्य की चिंता में डूबा रहता है..।। 
ये इंसान...।।
                                                                
              दीपक कोहली

23 May 2017

*एक पन्ना*



एक पन्ना मेरा बचपन का,
एक पन्ना मेरा लकड़पन का..।।

एक पन्ना मेरे आंसूओं का, 
एक पन्ना मेरे खुशियों का..।।

एक पन्ना मेरे अपनों का, 
एक पन्ना मेरे सपनों का....।।

एक पन्ना मेरा जन्म का,
एक पन्ना मेरा मृत्यु का......।।

यही मेरी किताब है.....।।


                        कवि- दीपक कोहली

01 May 2017

रानीखेत का अजय- "भट्ट"

जब - जब देवभूमि की बात होगी, तब - तब उन लालों को याद किया जाएगा। जिन्होंने देवभूमि के लिए अपना तन - मन से लगा दिया। जी हां उन्हीं में से एक हैं..। रानीखेत के अजय भट्ट। 

अजय भट्ट को सबसे पहले मैं जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं दूंगा। 1 मई 1961 को अल्मोड़ा के रानीखेत क्षेत्र में इनका जन्म हुआ था। इनके पिता कमलापति भट्ट और माता तुलसी देवी भट्ट थी। जो रानीखेत के गांधी चौक के रहने वाले थे। भट्ट बचपन से ही तीव्र बुद्ध वाले व्यक्ति थे। अजय भट्ट ने एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की है। भट्ट 1980 से राजनीति में सक्रिय हुए और बाद में बीजेपी से जुड़े। उत्तराखंड राज्य प्रगति हेतु बीजेपी प्रमुख मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में भट्ट को जेल भी जाना पड़ा था। वहीं अयोध्या कांड के लिए भट्ट को दो बार जेल भी हुई। पहली बार 18/10/1990 और दूसरी बार 26/10/1990 को। वहीं 8/12/1990 में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के अयोध्या कांड के बाद पहली बार सार्वजनिक तौर पर रानीखेत आगमन हुआ। जिसका भट्ट ने जनता के साथ प्रलब विरोध किया गया। जिसमें अजय को गिरफ्तार भी किया गया। अजय उत्तराखंड की राजनीति में एक अलग ही स्थान रखते है। अपने शांत-स्वभाव के लिए भट्ट पूरे प्रदेश में जाने जाते है। भट्ट का राजनीति असली जीवन सन् 1996 से शुरू हुआ। जब अजय को प्रदेश की रानीखेत सीट से बीजेपी ने विधायक का टिकट दिया। जिसमें अजय की जोरदार जीत हुई। 
आइए एक नजर डालते है भट्ट के राजनीति जीवन पर-
  • 1996-2000 विधायक- रानीखेत विधानसभा क्षेत्र.
  • 2002-2007 विधायक - रानीखेत विधानसभा क्षेत्र.
  • 2001-2002 प्रेदश सरकार में मंत्री.
  • 2 बार प्रदेश महामंत्री.
  • 8 साल- रानीखेत- मजदूर संघ- अध्यक्ष.
  • 28/10/2009 से 25/12/2011- राज्य ग्रामीण स्वास्थ्य सलाहकार.
वर्तमान में अजय भट्ट उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष है। वहीं इस बार के विधानसभा (2017) में अजय भट्ट को कांग्रेस के उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा। अगर भट्ट की व्यक्तिगत जीवन की बात करें तो, भट्ट की पत्नी पुष्पा भट्ट एक वकील है। अजय के चार बच्चे भी है, जिनमें तीन पुत्रियां- मेघा भट्ट, स्नेहा भट्ट, सुनीति भट्ट, और एक पुत्र दिग्विजय भट्ट है। जो इस समय उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे है। जैसे आपके बात दूं- अजय विदेशी यात्रा भी कर चुके है। जिसमें  भट्ट कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड की यात्रा कर चुके है। भट्ट अपने आप में काफी लोकप्रिय नेताओं में गिने जाते हैं।  

                                    रिपोर्ट- दीपक कोहली

* एक मई का महत्व *

                                 " मैं मजदूर हूं, मजबूर नहीं,यह कहने मैं मुझे कोई शर्म नहीं।
                                    अपने पसीने की खाता हूं, मैं मिट्टी को सोना बनाता हूं "।।


  
एक मई यानि मजदूर दिवस...। मजदूर का मतलब गरीब नहीं होता..। बल्कि मजदूर का मतबल वह इकाई होता है। जो हर सफलता का अभिन्न अंग है। चाहे फिर वो ईट और गारे में सना इंसान हो या फिर किसी ऑफिस के फाइल्स के बोझ के तले दबा एक कर्मचारी..। हर वो इंसान जो किसी व्यक्तिगत संस्था के लिए काम करता है, और बदले में पैसे लेता है। वो सब इंसान मजदूर हैं। 
मजदूर दिवस की शुरूआत अमेरिका के शिकांगो शहर से सन् 1886 से हुई। जब मजदूरों ने अपने काम को लेकर आवाज उठाई। अमेरिका में 1886 से पहले मजदूरों से 12-15 घण्टे तक काम करवाया जाता था। जिसके बाद मजदूर जागरूक हुए और अपने काम के घण्टों को लेकर आवाज उठाई। इसके बाद यह फैसला लिया गया, कि अब मजदूर 8 घण्टे ही काम करेगें। तभी से विश्व श्रम दिवस मनाने की प्रक्रिया शुरू हुई। जिसे आज लगभग 80 से अधिक देश मनाते हैं।
मजदूर ही देश का निर्माता है, मजदूर ही देश का निर्देशक है। मजदूर के बिना किसी भी देश का निर्माण संभव नहीं है। चाहे वह देश कितना ही धनी क्योंं ना हो..। मजदूर का देश के निर्माण में अहम योगदान रहता हैं। चाहे उद्योग हो या फिर किसी व्यक्तिगत संस्था में काम करना। देश के विकास में मजदूर का अहम योगदान रहता है। मजदूरों के बिना किसी भी राष्ट्र का निर्माण करना असंभव है। 
वैसे अगर हम बात करें...अपने देश कि, तो हमारे देश में 1 मई का इतिहास बड़ा ही महत्व रखता है। जहां 1 मई 1923 से देश में मजदूर दिवस की शुरूआत चैन्नई से हुई। वहीं इस दिवस की शुरूआत भारतीय किसान पार्टी के नेता "सिंगरावेलू चेटयार" ने की। जिसके बाद इस दिवस को विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाना शुरू कर दिया गया। वहीं 1 मई को देश के सिख समुदाय के लोग " भाई लालो दिवस " के तौर पर भी मनाते हैं। साथ ही 1 मई को महाराष्ट्र दिवस भी मानाया जाता हैं। जिस दिन महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई थी। 



हमारे देश में 1 मई का इतिहास सबसे अलग है। जहां एक मई को मई दिवस के रूप में मनाते है। तो वहीं पूरे विश्व में इसे विश्व श्रम दिवस के                                             रूप में मनाते है। 
मजदूर दिवस मजदूरों का दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिवस भी माना जाता है। अगर हम भारत की बात करें तो हमारे देश में मजदूरों के साथ आज भी अन्याय और उनका शोषण किया जाता है। जहां हमारे देश के कानून में मजदूरों से 8 घण्टे काम करने का कानून है। तो वहीं प्राइवेट कंपनियां 12-12 घण्टे काम करवाती है। जो एक चिंता का विषय है। वहीं अगर सरकारी दफ्तरों की बात करें, तो कानून सिर्फ यहां लागू होता दिखता है। वहीं बिरोजगारी दिन पे दिन बढ़ती जा रही है। जिससे मजदूरों का शोषण होता है। जिसके लिए सरकार को मजदूरों के लिए नए कानून बनाने चाहिए। वहीं देश में बाल मजदूरी और बंधुआ मजदूरी भी विषम चिंता का विषय है। गरीब-मजबूरों मजदूरों का शोषण आम बात हैं। वहीं लैंगिक भेदभाव भी मजदूरों में आम बात हैं। जहां महिलाओं के मुकाबले पुरूषों को ज्यादा वेतन दिया जाता है। जो यह दर्शाता है, कि हमारे देश में मजदूरों की स्थिति आज भी दैनीय हैं। 



                                                             रिपोर्ट- दीपक कोहली