सरिता जब भी श्रेया को देखती, उसके ईर्ष्या भरे मन में सवाल उठता, एक इसका नसीब है और एक उसका। क्या उसका नसीब उसे नहीं मिल सकता ?
सरिता के छोटे से फ्लैट की बालकनी से श्रेया का भव्य बंगला बहुत सुंदर दिखाई देता था। वह जब भी पति के साथ मोटरसाइकिल से निकलती, श्रेया के बंगले की पार्किंग एरिया में खड़ी बीएमडब्ल्यू पर नजर उसकी नजरें चिपक जातीं।
अपनी खूबसूरती को निखारने के लिए श्रेया खुले हाथों से पैसे खर्च करती थी। ट्रिम किए बाल, नियमित फेशियल, पेडिक्योर, मेनिक्योर, सब कुछ संपूर्ण। सिर से ले कर पैरों तक सब कुछ व्यवस्थित और सुंदर। जबकि सरिता के मर्यादित बजट में यह सब कहां से हो पाता। उसके बिखरे बाल, उसमें बीच-बीच में सफेद बाल। वह मेहंदी तो लगाती थी, पर कभी समय न मिलता तो काले बालों के बीच सफेद बाल झांकने में बिलकुल पीछे नहीं रहते थे।
साग-सब्जी काटते-काटते हाथों की अंगुलियो की चमड़ी खुरदुरी हो गई थी। खुद बर्तन मांजने से नाखूनों का रंग और आकार अजीब हो गया था। अगर श्रेया के यहां की तरह उसके यहां भी नौकरों की फौज होती तो उसका भी सिर से ले कर पैरों तक अलग ही नक्शा होता। पर उसके भाग्य में तो कुछ और ही था।
कहां श्रेया के डिजाइनर कपड़े और कहां उसके साधारण कपड़े, इस्त्री किए कपड़े पहनने का आनंद ही कुछ और होता है, घंटो इस्त्री पकड़ने वाले सरिता के हाथ उससे कहते। रविवार को किसी ठेलिया पर चाट-पकौड़ी या समोसे-कचौड़ी खा कर लौटते हुए सरिता यही सोचते हुए अपार्टमेंट की सीढ़ियां चढ़ रही होती कि बीएमडब्ल्यू में फाइवस्टार होटल की लज्जत ही कुछ और होती है।
श्रेया का शरीर हमेशा सोने और हीरों के गहनों से सजा होता था। समय समय पर वे बदलते रहते थे। जैसे कपड़े, वैसे आभूषण। जबकि सरिता को विवाह के समय जो मंगलसूत्र मिला था, वही एक महत्वपूर्ण गहना था। सोना खरीदने की औकात नहीं थी, इसलिए चांदी पर सोना चढ़वा कर दिल को संतोष मिल जाता था।
पर श्रेया को देख कर सरिता के दिल का संतोष लुप्त हो जाता और मन ईश्वर से एक ही सवाल पूछता, 'श्रेया का भाग्य उसे नहीं मिल सकता क्या ?'
और अगर मिल जाए तो...
तमाम मेघधनुषी सपने आंखों में तैरने लगते। शाम को जब पड़ोस में रहने वाली हिमांशी ने बताया कि सामने वाले बंगले में रहने वाली श्रेया को ब्लड कैंसर है और लास्ट स्टेज में है। तब से सरिता भगवान से यही प्रार्थना कर रही है कि उसके भाग्य में जो है, वही ठीक है। प्लीज अदला-बदली मत कीजिएगा।
- वीरेंद्र बहादुर सिंह