प्राची दिशा में सूरज जब उदय होता है और जब पश्चिम में अस्त होता है। उस दृश्य को मनोहारी रूप में कवियों ने अनेक वर्णन किये हैं।
प्रयागराज की उस धरती में जहाँ गंगा - यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम लोगों का मन मोहित करता है। लेकिन श्याम बिहारी का मन तो बहुत ही व्यथित था।
स्वरूप रानी अस्पताल के गैस्टर्रो वार्ड के बेड क्रमांक 25 पर लेटी महिला और कोई नहीं श्याम बिहारी की जीवन संगिनी है, भारती! जो कभी हल्का श्रृंगार करके भी किसी देवी से कम नहीं हुआ करती थी।
आज उसी प्राची दिशा में यह उगता सूरज श्याम बिहारी को बहुत नीरस, भयावह और क्रूर लग रहा था, जिसका वर्णन करना संभव नहीं है। स्वरूप रानी अस्पताल के हर वार्ड को निहारता, उसे यह सूरज किसी यम के काल दण्ड से कम नहीं लग रहा था।
सूरज की लालिमा उस रक्त की तरह लग रही थी जो, किसी वहशी भेड़िया के शिकार से बहती रक्तधार जैसी लग रही थी। पूरे अस्पताल प्रांगण में कोई हंसता - मुस्काता चेहरा नहीं था। सिर्फ एक गहरा दर्द समेटे लोग थे।
सभी दौड़ रहे थे, कोई डाक्टर के पास दौड़ लगा रहा था, कोई मैडिकल की दुकान से दवा लाने के लिए स्पीड बढ़ा रहा था। चारों ओर दर्द ही दर्द, क्योंकि वे इतना थक गए थे कि, अब दौड़ने की शक्ति ही कम हो गई थी।
श्याम बिहारी को और देश के मैडिकल कालेजों में यह स्वरूप रानी अस्पताल अलग दिख रहा था। और जगह डाक्टरी पढ़ते छात्रों को अनुशासन और कर्तव्य के साथ यह भय भी था कि, अगर शिकायत हो गई तो अंक पत्र गड़बड़ हो जाएगा। और यहाँ सिखाया जा रहा है कि, कैसे लाचार - बेबस, बेचारे लोगों को लूटा जा सकता है, कैसे दलाली डाक्टरी से पैसा कमाया जा सकता है। शिकायत किससे करे सभी चोर - चोर मौसेरे भाई जो हैं।
भारती का उदास चेहरा और इस प्रयागराज की धरती में निकलता इस सूरज की लाल रौशनी से साफ लग रहा था कि, डूबते - निकलते, डूबते - निकलते अब यह सूरज भी थक गया है। और रो - रो कर सूरज की यह रक्त किरणें उसकी दुनिया की पीड़ा समेटे श्याम बिहारी की आँखों जैसी लग रही थी।
भारती की यादें, श्याम बिहारी की आँखों जैसी लग रही थी।
भारती के साथ बिताए यादगार पल, श्याम बिहारी की आँखों को लाल कर रही थीं। और उसके बहते आँसू यमुना के जल जैसे लग रहे थे।
श्याम बिहारी को बीती बातें याद आ रही थीं। जब भारती उसके जीवन में आई थी तब गाँव में सड़क नहीं थी। बिजली भी नहीं थी। और यह मोबाइल आदि संचार माध्यम भी नहीं थे।
शहर की भारती को लोग देखकर कहते थे कि, "यह इतनी सुंदर शहर की, इस गांव में कहाँ रहेगी!"
लेकिन श्याम बिहारी का प्यार पाकर भारती ने वह आदर्श कायम किया, जो एक सच्ची भारतीय नारी में होता है।
सास - ससुर के नहीं रहने के बाद भारती और श्याम बिहारी ने बच्चों के प्रति अपना जीवन समर्पित कर दिया था। बच्चों की पढ़ाई - लिखाई और शादी - विवाह में पता ही नहीं चला कि, वह कब बूढ़े हो गए।
भारती का वह प्यार श्याम बिहारी को याद आ रहा था। गरम भोजन के साथ, उसने एक लोटा पानी तक श्याम बिहारी को लिए खड़ी मिलती थी।
दुख होता क्या है, भारती के रहते श्याम बिहारी ने नहीं जाना था।
अचानक बीमारी ने श्याम बिहारी की भारती को धर दबोच लिया। क्या कहाँ, कैसा, कितने अस्पताल, झाड़ - फूँक के स्थान, श्याम बिहारी अपने दम तक भारती की दवा कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा था।
बहुत से डाक्टर उसे लूटते रहे और वह लुटता रहा। इस तरह आज एक साल से भारती ऐसी थकी कि, श्याम बिहारी का कलेजा मुँह को आ गया।
श्याम बिहारी साठ पार कर चुका था। इंद्रियाँ शिथिल हो गई थी। उसकी रक्तिम आँखें उगते सूरज की तरह लग रही थीं। लेकिन यह भयावह थी, मनोहारी नहीं!
एक और खेत बेंचकर श्याम बिहारी दवा कराना चाहा था कि, लोगों ने उसे नहीं छोड़ा और लूटना शुरु कर दिया था। और जिन बेटों के लिए अपना जीवन बर्बाद कर दिया था। उन्हीं बेटों को समय नहीं था। कि, माँ के पास रह सकें।
भारती का उदास चेहरा कुछ कहना चाह रहा था। जिसे श्याम बिहारी जान रहा था, समझ रहा था। लेकिन श्याम बिहारी जानकर भी अनजान बना रहा।
अब प्राकृतिक पंक्षी भी नहीं रहे जो कलरव करते और कुछ सबेरा जैसा लगता। अब तो इस बड़े पूरे स्वरूप रानी अस्पताल में करूणा ने अपना डेरा डाला है। सभी उदास हैं। आँखों में आँसू और कोई आँसुओं को पीकर, इस उगते लाल सूरज की ओर से आँखें फेर ली है।
कहीं कहीं, किसी का धैर्य का बाँध टूट रहा है और किसी - किसी वार्ड से करुण स्वर में रोना सुनाई देता है।
भारी भीड़ है स्वरूप रानी अस्पताल में लेकिन सभी अकेले से लग रहे हैं। और श्याम बिहारी को तो बहुत ही अकेलापन लग रहा है।
बात करने में भारती की आवाज डगमगा रही है। श्याम बिहारी छोटे बेटे को सौंपकर और पैसे बनाने के चक्कर में गाँव चला आया था।
भारती सभी की याद कर रही थी, बहुओं की, बेटों की और पोतों की। और अपने सगे भाई - भौजाई की।
श्याम बिहारी जानता है कि, अगर भारती नहीं रही तो वह भी नहीं रहेगा। श्याम बिहारी प्रयास में है कि, उसके बेटे - बहुएँ आ जाएं और भारती का मनोबल बढ़े।
इस निर्दय, यमपुरी के डाक्टरों के बीच श्याम बिहारी और कर भी क्या सकता था। भारती का गोरा बदन काला पड़ता जा रहा था। और यह सूरज लाल से सफेद होता जा रहा था।
श्याम बिहारी जानता है कि, भारती और खुद का सूरज ढलान पर है। और एक अनजाना सा डर उसे सताने लगा है।
भारती सी आदर्श महिला गाँव में बहुत कम ही थीं। भारती और श्याम बिहारी का प्रेम बाहरी नहीं, आंतरिक इतना गहरा था कि, उसकी गहराई नापना सब के बस में नहीं है।
"आऽह!" श्याम बिहारी को लगा भारती है और श्याम बिहारी में पता नहीं कहाँ की शक्ति आई कि, वह एक पल के अंदर भारती के बेड क्रमांक 25 के पास पहुँच गया।
भारती का गोरा बदन काला पड़ गया था, जैसे सूर्य के अस्त होते ही रात्रि की कालिमा छा जाती है।
श्याम बिहारी और भारती का जीवन सफर, यहाँ तक का बहुत ही संघर्षपूर्ण था। लेकिन भारती की ताकत श्याम बिहारी के सफर में वह ताकत थी, जिसे कठिन से कठिन मार्ग को भी श्याम बिहारी आनन - फानन में तय कर लेता था।
बीमार भारती को श्याम बिहारी सरकारी जिला अस्पताल से लेकर गया था। जहाँ से उसे रिफर कर दिया गया था, प्रयागराज के लिए।
यूँ जल्दी आराम के चक्कर में एक प्राइवेट अस्पताल में जब श्याम बिहारी ने पता किया तो दस हजार से भी ज्यादा प्रतिदिन का उसका नर्सिंग खर्च था। खर्च देने में असमर्थ श्याम बिहारी ने सरकारी अस्पताल स्वरूप रानी में भारती को भर्ती करा दिया और इस सरकारी अस्पताल का वार्ड ब्वाय तक यमराज का दूत ही समझ में आया।
नहीं कहते किसी मंत्री का कोई खास कुछ सुबिधाओं का हकदार बनता हो तो बनता हो। वरना यहाँ सुई से लेकर महंगी दवा तक, बाहर से लाना पड़ता है। और यहाँ भी डाक्टरों का कमीशन साफ समझ में आ रहा है।
पढ़ा लिखा श्याम बिहारी अब हार चुका था। पैसे बना पाना उसके लिए कठिन हो गया था।
श्याम बिहारी से अपनी जीवन संगिनी भारती की हालत देखी नहीं जा रही थी। अब क्या करूँ यही सोच रहा था, श्याम बिहारी! तभी भारती ने कहा, "श्याम, अब मुझे घर ले चलो!"
श्याम बिहारी भी यही सोच रहा था।
आखिर किसी तरह भारती को काफी मशक्कत के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। और श्याम बिहारी एक एम्बुलेंस से भारती को लेकर अपने घर की ओर चल पड़ा।
दुनिया भर का दर्द श्याम बिहारी के चेहरे पर साफ झलक रहा था।
लेखक- सतीश बब्बा
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