सबके अपने-अपने रंग हैं
सबके अपने-अपने ढंग हैं
वो अकेला खड़ा वहाँ पर
इसके देखो कितने संग हैं।
रंग के रंग में रंग रहे सारे
चेहरे लग रहे न्यारे न्यारे
थाप चंग पर गा रहे होरी
रंगन के बह रहे परनारे।
भेदभाव तनाव मिटाती
घर घर में खुशियाँ लाती
फागुन की शक्ल में होली
महीनों पहले ठाठ जमाती।
सब पर उच्छृंखलता छाई
कर रहे हैं मन की भरपाई
लाल हरे पीले का संगम
भर रहा सब में तरुणाई।
द्वेष की होली जलाकर
प्रेम का प्रहलाद बचाकर
भूल जाएं सब बीती बातें
आपस में अबीर लगाकर।
हिलमिल करके सभी मनाएं
गले मिलें गुलाल लगाएं
होली बन जाये हेली सी
रंगोली जीवन बन जाएं।
लेखक- व्यग्र पाण्डे
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