अगर मैं आपसे बोलो कि कोई व्यक्ति शिवलिंग की पूजा करता है और शिव की मूर्ति की पूजा नहीं करता है और अपने आप को हिंदू नहीं मानता है, तो आप क्या कहेंगे ? शायद आपके पास शब्द नहीं होंगे, क्योंकि आपने आज तक ऐसा ना कभी सुना होगा, ना ही जानने का प्रयास किया होगा। चलिए आज मैं आपको कर्नाटक के एक समुदाय के बारे में बताता हूं। इस समुदाय का नाम लिंगायत है। यह समुदाय भारत के कर्नाटक राज्य में करीब 18% से अधिक जनसंख्या वाला समुदाय है।
इस समुदाय के लोग ना हिंदू मंदिरों में जाते हैं, ना ही किसी हिंदू भगवान की पूजा करते हैं। इस समुदाय का मानना है कि इनकी संस्कृति हिंदुओं से अलग है। ये अपने शरीर को ही अपना मंदिर मानते हैं और किसी भी प्रकार का कोई अंधविश्वास व कर्मकांड नहीं करते हैं। इस समुदाय में कोई जाति व्यवस्था है, जबकि हिंदू धर्म अंधविश्वास, पाखंड और जातिवाद से भरा पड़ा है। इस समुदाय के सभी लोगों की पहचान लिंगायत के रूप में होती है। लिंगायत समुदाय के लोगों का कर्नाटक की राजनीति से लेकर शासन-प्रशासन में अच्छी पकड़ है।
लिंगायत धर्म की स्थापना 12वीं सदी के महान समाज सुधारक, दार्शनिक और कवि बसवेश्वर ने की थी। यह समुदाय एक कट्टर एकेश्वरवादी और वैदिक कर्मकांड का विरोधी है। लिंगायत लोग अपने गले में एक चांदी के डब्बे में शिव लिंग धारण करते हैं। इनका मानना है कि शिव हर मनुष्य के शरीर में है। इसीलिए यह समुदाय के लोग मरने के बाद शव को जलाते नहीं है, बल्कि शव को दफनाकर उसके ऊपर शिवलिंग स्थापित करते हैं। कर्नाटक की ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर इस समुदाय के मठ बने हुए हैं और इन मठों में गरीब बच्चों शिक्षा की व्यवस्था से लेकर खाने-पीने इत्यादि की व्यवस्था बनी है।
लिंगायत समुदाय के लोग हर रोज शिव लिंग यानी अपने इष्टलिंग की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान सबसे पहले अपने इष्टलिंग को दाएं हाथ की हथेली के बीच में रखते हुए उसे दोनों आंखों के बीच तक ऊपर उठाया जाता है। इस अवस्था में कुछ देर तक ध्यान लगाया जाता है। इसके बाद हथेली पर इष्टलिंग को हथेली पर रखकर जलाभिषेक किया जाता है। इस दौरान ओम नमः शिवाय का गुरु मंत्र का पाठ किया जाता है। इस पूजा में स्त्री, पुरुष सहित सभी लोग शामिल हो सकते हैं।
शिवलिंग धारण करने की आयु सीमा अलग अलग होती है। एक शिशु को 3 दिन, 5 दिन या 9 दिन में शिव लिंग धारण करवाया जा सकता है और गर्भवती महिला 8 महीने की गर्भवती होने के दौरान शिवलिंग को अपने बाजू पर धारण कर सकती है। शिशु को इष्टलिंग धारण करवाते वक्त कान में एक मंत्र बोला जाता है। अगर लड़का पैदा होता है तो उसके बाल उतारने जाते हैं। यह समुदाय पुनर्जन्म की बातों में यकीन नहीं करता है। लिंगायत समुदाय की तरह भारत में कई ऐसे समुदाय हैं जिनकी संस्कृति और सभ्यता अलग है, मगर उन्हें अभी तक धर्म की मान्यता नहीं मिल पायी है।
- दीपक कोहली