साहित्य चक्र

04 September 2018

।। सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन और शिक्षा दिवस ।।


एक शिक्षक का हमारे जीवन में बहुत बड़ा योगदान होता है जैसे माता पिता हमें चलना सिखाते हैं उसी तरह एक शिक्षक हमें जीवन में आगे कदम बढ़ाना सिखाता है भारतवर्ष में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।उनका विचार था कि

"शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके."

शिक्षक दिवस डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन का जन्म दक्षिण मद्रास में लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तिरुतनी नामक छोटे से कस्बे में 5 सितंबर सन् 1888 को सर्वपल्ली वीरास्वामी के घर पर हुआ था। उनके पिता वीरास्वामी जमींदार की कोर्ट में एक अधीनस्थ राजस्व अधिकारी थे। डॉ. राधाकृष्णन बचपन से ही कर्मनिष्ठ थे।1939 से लेकर 1948 तक वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बी. एच. यू.) के कुलपति भी रहे। वे एक दर्शनशास्त्री, भारतीय संस्कृति के संवाहक और आस्थावान हिंदू विचारक थे। सन् 1952 में डॉ. राधाकृष्णन भारत के उपराष्ट्रपति बने। 1954 में उन्हें भारतरत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया।डॉ.राधाकृष्णन 1962 में राष्ट्रपति बने तथा इन्हीं के कार्यकाल में चीन तथा पाकिस्तान से युद्ध भी हुआ।1965 में आपको साहित्य अकादेमी की फेलोशिप से विभूषित किया गया तथा 1975 में धर्म दर्शन की प्रगति में योगदान के कारण टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।उनका विचार था कि

"हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना चाहिए जहाँ से अनुशासन और स्वतंत्रता दोनों का उद्गम हो."

डॉ. राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है।उनका मानना था कि शिक्षा हमारी हर समस्या का समाधान है। हर व्यक्ति के लिए शिक्षा अनिवार्य है क्योंकि शिक्षा व्यक्ति को पशु से मनुष्य बनाती है। उनकी दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के सोच को इस प्रकार बदलना होना चाहिए कि वह प्रजातन्त्र का एक जिम्मेदार नागरिक बन सके। उनके विचार था कि

"ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है."



आज के समय में भले ही शिक्षक और शिक्षार्थी का संबंध पहले जैसा अच्छा नहीं रहा फिर भी हमें उस संबंध को पहले जैसा बेहतरीन अच्छा करना ही होगा क्योंकि एक शिक्षक ही हमें जीवन के सही मूल्य के बारे में बताता है। शिक्षा की की निजी करण के कारण शिक्षकों का स्वभाव भी बदल गया शिक्षा व्यवसाय बनके रह गया है अंत में मैं यही कहूंगा कि हमें सर्व पल्लवी डॉक्टर राधाकृष्णन जी के विचारों पर चलकर शिक्षा के गौरव को बढ़ाते रहना चाहिए और शिक्षक और शिक्षार्थी के संबंध को और भी अच्छा बनाना चाहिए

अमित डोगरा
पीएचडी स्कॉलर 
हिंदी विभाग
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर


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