साहित्य चक्र

04 September 2018

।।गुरु की महिमा।।

हर मनुष्य के जीवन में एक ऐसा व्यक्ति जरूर होता है जो उसको जीवन के मुल्यों के बारे में समझाता है और आगे बढ़ने के लिए सदा प्रोत्साहित करता है ऐसा व्यक्ति ही हमारा गुरु कहलाता है। जीवन के हर क्षेत्र में हमें गुरु की आवश्यकता पड़ती है जैसे हमें शिक्षा ग्रहण करनी है तो हमें गुरु के पास जाना पड़ता हैं, कोई काम सीखना हैं तो भी गुरु की आवश्यकता पड़ती है और यदि हमें ईश्वर से मिलना हैं तो भी हमें गुरु से ज्ञान लेना पड़ता  हैं। इसीलिए हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में चले जाएं हमें गुरु से जुड़ना ही पड़ता है। गुरु की महिमा आदि काल से  चली आ रही है।श्री गुरु नानक देव जी, कबीर,नामदेव, मीराबाई ,रैदास,जायसी आदि जैसे बहुत सारे हिंदी कवि हैं जिन्होंने गुरु की महिमा का गुणगान किया हैं।

"जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥"

आजकल गुरु के लिए हम बहुत सारे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं जैसे शिक्षक,अध्यापक टीचर इत्यादि। प्राचीन समय में जब हम किसी के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए या वेदों का अध्ययन करने के लिए जाते थे तो उन्हें शिक्षक की जगह गुरु कहा जाता था पर आजकल गुरु शब्द के स्थान पर शिक्षक शब्द का अधिक प्रयोग होता है इसका मुख्य कारण यह है कि पहले जो शिक्षा-दीक्षा होती थी वह मंदिरों में या मस्जिदों में या फिर गुरुद्वारों में होती थी मगर आजकल शिक्षा को इन से बाहर कर अलग संस्थानों में दिया जाता है। पर हम गुरु कहे या शिक्षक, गुरु की महिमा आज भी बनी हुई हैं।

"बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।"



हर साल पुरे भारत के स्कूलों और कॉलेजों में 5 सितम्बर को, हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस पर उन्हें सम्मान और श्रद्धांजलि देते हुए इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में पूरे दिन उत्सव-सा माहौल रहता है। दिनभर रंगारंग कार्यक्रम और सम्मान का दौर चलता है। 

समय के साथ-साथ गुरु की महिमा भी कम होती जा रही है गुरु का मान सम्मान आजकल बहुत कम लोग करते हैं जहां तक हम शिक्षा क्षेत्र की बात करें तो वहां पर गुरु शिष्य का संबंध पहले जैसा नहीं रहा न पहले जैसे शिक्षक रहे हैं और न ही शिक्षार्थी रहे हैं।

"गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥"

शिक्षा क्षेत्र के निजीकरण के बाद से शिक्षा एक व्यवसाय का रूप ले चूंकि है इसलिए शिक्षकों के व्यवहार में भी परिवर्तन देखने को मिला है, यही मुख्य कारण है कि शिक्षकों के सम्मान में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है | शिक्षकों के सम्मान में आई कमी के लिए छात्र ही नहीं बल्कि शिक्षक भी समान रुप से दोषी हैं | 
      अंत में अपनी कलम को विराम देते हुए यही कहूंगा कि हमें शिक्षक दिवस के महत्व को समझते हुए गुरु की महिमा को बनाए रखना चाहिए और अपने शिक्षक या अपने गुरु का हमेशा मान सम्मान करना चाहिए। शिक्षकों को भी शिक्षार्थियों के मित्र, परामर्शदाता, निर्देशक एंव नेतृत्वकर्ता की भूमिका अदा करनी चाहिए तो जो गुरु शिष्य का संबंध अटूट बनाया जा सकें।

                    -राजीव डोगरा-
                 कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश


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