साहित्य चक्र

01 November 2024

लेख- गढ़वाल की बग्वाल

गढ़वाल क्षेत्र में दिवाली का त्योहार विशेष उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, जिसमें बग्वाल, या बग्वाल की दिवाली, का विशेष महत्व है। इस त्योहार को "बग्वाल" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह उत्सव स्थानीय परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ा हुआ है। गढ़वाल में दिवाली को अलग-अलग क्षेत्रों और समुदायों में विविधता के साथ मनाया जाता है, जो इसकी सांस्कृतिक धरोहर और विविधता को दर्शाता है।


बग्वाल दिवाली का महत्व:- गढ़वाल की बग्वाल दिवाली की खासियत यह है कि इसे देवी-देवताओं, पुरखों, और प्रकृति की पूजा के रूप में मनाया जाता है। गढ़वाल के लोग इसे अपने पूर्वजों को याद करने और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने का अवसर मानते हैं। इस दिन को कई लोग उस समय से भी जोड़ते हैं जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे और उनके स्वागत के लिए अयोध्यावासियों ने दीप जलाए थे।

बग्वाल दिवाली के रीति-रिवाज:- बग्वाल दिवाली के रीति-रिवाज गढ़वाल की संस्कृति के अनुरूप हैं। दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव में कई अनूठी गतिविधियां शामिल होती हैं-

धनतेरस:- बग्वाल दिवाली का पहला दिन धनतेरस होता है। इस दिन लोग नए बर्तन, आभूषण और संपत्ति खरीदते हैं, जो समृद्धि का प्रतीक है।

नरक चतुर्दशी:- इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन लोग स्नान करते हैं और खुद को पवित्र मानते हैं। पुराने समय में इसे बुराई से मुक्ति के रूप में देखा जाता था।

दीपावली की रात्रि:- गढ़वाल में दिवाली की रात को विशेष मानते हैं। इस दिन मिट्टी के दीयों को जलाकर घर, आंगन और मंदिरों में सजाया जाता है। लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं और देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों को सजाते हैं।

गोवर्धन पूजा:- गोवर्धन पूजा का महत्व गढ़वाल के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से देखा जाता है। इस दिन लोग गाय, बैल, और अन्य पशुधन की पूजा करते हैं, क्योंकि इन्हें अपने परिवार का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।

भैया दूज:- इस दिन भाई-बहन के प्रेम को मान्यता दी जाती है। बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती हैं।

खेल-ढोंग और लोकगीतः- गढ़वाल की बग्वाल दिवाली में खेळ और ढोंग की भी महत्ता है। त्योहार के दिनों में गांव के लोग इकट्ठे होकर लोकगीत गाते हैं और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य करते हैं। इन गीतों में क्षेत्र की महिमा, देवी-देवताओं की कहानियां, और पुरखों की गाथाएं गाई जाती हैं। इसे सामाजिक एकता और खुशी का प्रतीक माना जाता है, जिसमें पूरा गांव एक परिवार की तरह सम्मिलित होता है।

बग्वाल दिवाली का पर्यावरणीय पक्षः- गढ़वाल की दिवाली एक प्रकृति-मित्र उत्सव के रूप में मनाई जाती है। यहां के लोग इस त्योहार को प्रकृति का आभार व्यक्त करने का अवसर मानते हैं। परंपरागत रूप से, पटाखों का उपयोग कम किया जाता है और दीयों का महत्व ज्यादा होता है, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान होता है।

आधुनिक समय में बदलावः- समय के साथ, गढ़वाल की दिवाली में भी कई बदलाव आए हैं। अब लोग आधुनिक रोशनी, पटाखों, और सजावट का उपयोग करने लगे हैं, लेकिन फिर भी पारंपरिक रीति-रिवाज और सांस्कृतिक मूल्य अपनी जगह कायम रखे हुए हैं। गढ़वाल के लोग अपने त्योहार को पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाते हैं, जो उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है।

निष्कर्ष- गढ़वाल की बग्वाल दिवाली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है। यह त्योहार गढ़वाल के लोगों की आस्था, परंपरा, और सांस्कृतिक गर्व को दर्शाता है। बग्वाल की दिवाली एक ऐसा अवसर है जब लोग अपने परिवार और समाज के साथ मिलकर खुशियों का आदान-प्रदान करते हैं और पुरखों की स्मृतियों को संजोते हैं।

कविता- दर्पण



दर्पण मुझे मेरी सूरत का हिसाब मांगे, 
आज तक की यह हर गुनाह का हिसाब मांगे।

दर्पण याद दिलाता है गुज़रे दिनों की, 
हर गुजर दिन अपना हिसाब मांगे।

दर्पण याद दिलाता है मेरे प्यार की, 
मेरा प्यार अपना हिसाब मांगे।

दर्पण याद दिलाता है अपने मात पिता की,
 मात-पिता अपने होने का हिसाब मांगे।

 दर्पण याद दिलाता है कॉलेज के अतीत दिनों की,
 कॉलेज के अतीत दिन अपना हिसाब मांगे।

दर्पण याद दिलाता है अपने जीने की, 
जीना मुझे हर दिन का हिसाब मांगे।

दर्पण मुझे मेरी सूरत का हिसाब मांगे, 
आज तक किया हर गुनाह का हिसाब मांगे।


                                           - गरिमा लखनवी

कविता- दीप



दीप जलते नहीं 
जलाए जाते है।
मोहब्बत की नहीं
निभाई जाती है।

खुशियां आती नहीं 
लाई जाती है।
अपने बनते नहीं
 बनाए जाते है।

कर्म दिखाए नहीं
किए जाते है।
हमसफर दिखाया नहीं 
बनाया जाते है।

सत्य समझाया नहीं 
समझा जाता है। 
श्री राम बनाए नहीं 
कर्मो से बना जाता है।


                                  - डॉ.राजीव डोगरा


कविता- दिल चाहे आसमान में उड़ना



मिल जाती है जब किसी को बहुत खुशी
उम्र बीत गई थी जिसको रहता था दुखी
दिल चाहे उड़ना आसमान में उसका
भावनाएं आ जाती हैं बाहर जो दिल में थी छुपी

अचानक से कोई मिल जाये अपना
लगता है जैसे देख रहे कोई सपना
जिसकी कृपा से वह आ गया सामने
नाम उसका चाहता है मन श्रद्धा से जपना

वर्षों बाद किसी की हो जाये पूरी मुराद
हो गया था जिसका जीवन में सब बर्बाद
जी रहा था करके अच्छे दिनों की याद
मुक्ति मिली चिंता से अब हुआ आज़ाद

गले लगाता घूम घूम कर सबको
कहता है सब को ही अपना
पूरी हुई जो आस अब मेरी
हकीकत है या कोई सपना

                                  - रवींद्र कुमार शर्मा


कविता- दीप




        न सही विश्वास मेरा,
        पूछ लें उस दीप से।

        जो रात सारी रहा जलता,
        साथ मेरे बन प्रतिबिंब।।

             हाल सारा जायेगा कह,
             दीप वह जो बुझ गया।

             जगने का सबब मेरा,
             और जलने के मजा।।

        मांगती विश्वास का बल,
        देख ले इक नजर भर।

        बस वही लेकर मैं संबल,
        जलती रहूँगी चिर -युगों तक।।

             हाथ गहकर बस तू कह दे,
            सफल होगी यह प्रतीक्षा।

            उम्र के विश्वास की,
            बहुत है वह एक ही पल।।

                     
                                        -  डॉ. पल्लवी सिंह 'अनुमेहा'