साहित्य चक्र

30 March 2024

हे कौन्तेय...

फोटो स्रोतः गूगल


महाभारत        के        श्रेष्ठतम     पात्र, 
वह    थे        उनके    ही   ज्येष्ठ   भातृ।

किया शिशु  को   प्रवाहित  गंगा नदी  में, 
जो   थी    उनकी   और पांडवों की मातृ

सचमुच        तुझे       सब      ने     छला, 
मात-पिता गुरु संग  यशोदा  के  भी लला

जो    ना    विस्मृत    होता   तुझे वह ज्ञान, 
वध     तेरा       नहीं       था      आसान

सूर्य  थे  पितृ  किन्तु मन में कैसा था खोट  
वह   भी   छुप    गए     बादलों   के ओट

माता   को     भी     अभी     था   बताना, 
युद्ध     का   निष्कर्ष     था   जब   आना

बता दिया कि   तुम     हो   ज्येष्ठ  कौन्तेय, 
पार्थ    से   क्यों     नहीं     किया  याचना ?

वाकई  तूने     खाई    बहुत   ही    चोट  है 
वाकई   तूने     खाई   बहुत    ही   चोट है

परंतु   हे   राधेय  हे  कौन्तेय   हे   अंगराज, 
हे        दुर्योधन       के      मित्र          श्रेष्ठ,
सच       में        तुम        तो     हो   महान, 
दिनमान        के         तुम      हो    संतान, 
किंतु      चक्रव्यूह      में      अभिमन्यु    के, 
छल     से    तुम        भी     हरे    हो  प्राण

हे अंगराज  महान  चाहे  लाख   दानवीर हो, 
श्री     श्रद्धेय     परशुराम    के  शूरवीर   हो, 
परंतु      यज्ञसेनी     की     भरी    सभा   में, 
हरण        किये       तुम      भी     चीर  हो

अधर्म         का            दिया            साथ,
पाप          खुद                 लिया       माथ, 
बात       जब      धर्म      अधर्म    की    हो, 
तब       धर्म       ही          आएगा      हाथ

किंतु   हे     कर्ण   तुझसे   अद्भुत   प्रीत   है, 
तेरी     हार     में     भी    तेरी     जीत     है,
बुरा       का       अंत     तो     होगा      बुरा 
यही      तो      दुनिया      की       रीत     है

हे     सूर्यपुत्र      तुझे    ह्रदय     से      नमन, 
सब       करते       हमेशा       तेरा      वंदन, 
पूजे         जाते        हो        तुम         सदा, 
अर्पित         चरणों       में      तेरे      सुमन


                                                                        - सविता सिंह मीरा 


कविताः फुर्सत





फुर्सत ना मिली ।
कभी खुद से मुलाकात होती। ।
मैं सुनता ही रहा सबकी।
काश !कभी खुद से भी बात होती।

 फुर्सत ना मिली कभी खुद से मुलाकात होती।
जिंदगी ने उम्मीदों की एक लंबी लिस्ट थमा  डाली।
मैंने भी समझौतों से हर बात बना डाली।
फुर्सत ना मिली.....
काश! एक उम्मीद खुद से भी की होती।
अपाहिज सपनों को लेकर जिंदगी
आज इस तरह ना चली  होती।

फुर्सत ना मिली कभी खुद से मुलाकात होती।
वो जिन के लिए फुर्सत से खुद को भूल गया।

उनको फुर्सत ना मिली सोचने की ,
 कि उनके लिए तुमने क्या किया।

आज फुर्सत से खुद से मिला तो जाना।
बस अपना साथ ही साथी है।
बाकी  सब तो था.... बहाना।


                                                             - प्रीति शर्मा 'असीम' 


कविताः स्कूल चले




आओ हम स्कूल चले 
नव भारत का निर्माण करें

छूट गया है जो 
बंधन भव का 
आओ मिलकर उसको 
पार करें,
आओ हम स्कूल चले...

जाकर स्कूल हम
गुरुओं का मान करें 
बड़े बूढ़ों का कभी न
हम अपमान करें,
आओ हम स्कूल चले...

जाकर स्कूल हम 
दिल लगाकर पढ़ेंगे
मौज मस्ती और खेलकूद भी 
खूब करेंगे,
आओ हम स्कूल चले...

क ख ग का गान कर 
हम हिंदी का मान बढ़ाएंगे।
एक दो तीन चार पढ़ कर
गणित का ज्ञान भी करेंगे।
आओ हम स्कूल चले...


                                        - डॉ.राजीव डोगरा



होली की मनमोहक कविताएँ

फोटो स्रोतः गूगल


दिखे जब रंगों की झलकी समझो होली आई 
खड़कते दिल के दरवाजे समझो होली आई 

कलियों के देखे रंग दमकते समझो होली आई 
छलकते जगह-जगह जाम समझो होली आई 

होते हो नाच गाने बैठकों में समझो होली आई 
दिखते हो नाजो अदा समझो होली आई

गाल लाल,गुलाबी आंखें, हाथों में पिचकारी समझो होली आई 
भरी पिचकारी चलें  अंगिया पर समझो होली आई 

सीनो से ढलके आंचल समझो होली आई 
लपके  जब सब दिल लेने को समझो होली आई 

लचक लचक कमर चले,फड़के जब तन समझो होली आई
नैन मटकाकर नैन लड़ाए समझो होली आई

खेल रहा कीचड़ में बेताब समझो होली आई 
बहक रहे सब मदहोश हो समझो होली आई 


                                                               - आलोक सिंह बेताब


*****

रंग  जमाने,  गुलाल  उड़ाने,
गले  लगाने, सबको  हँसाने,
चल देती मस्तानों की टोली,
खुशियों भरा, रंग-बिरंगा त्योहार है होली!

मीठी गुजिया, तीखा दही भल्ला,
बाहर सड़क पर, मचा हो हल्ला,
चेहरे  पर   सबके   बनी  रंगोली,
ऐसे ही तो मनाते हैं लोग प्यार से होली!

बच्चों की खरीदारी, नई पिचकारी,
गुब्बारे   भरकर,  कर  ली  तैयारी,
प्यारी लगती उनकी हँसी ठिठोली,
इनका  तो  पसंदीदा  त्योहार  है  होली!

हर  माता - बहन, नए  वस्त्र  पहन,
एक दिन पहले पूजे, होलिका दहन,
खुशियों से भर जाए  उनकी झोली,
अग्नि में कष्टों को स्वाहा कर देती होली!

सच्ची मुस्कान और बनते पकवान,
घर    पर    आते,  खूब    मेहमान,
आपस मे बोलें सब प्रेम भरी बोली,
ये ही हमारी परम्परागत भारतीय होली!

रखना याद, बड़ो का आशीर्वाद,
रहेगा   साथ  हम  होंगे  आबाद,
उनको  लगे  हमारी सूरत भोली,
उन्ही  से  शुरू करनी  है  अपनी होली!

आएगी क्रांति जब देश मे होगी शान्ति,
अमन है ज़रूरी, ये दुनिया भी जानती,
सरहद पर चले ना, अब एक भी गोली,
तभी मनेगी हमारी असली पावन होली।

                                                     - आनन्द कुमार

*****

बात अलग है

क्या हुआ जो धर्म अलग है,
क्या हुआ जो जज़्बात अलग है,
एक बार  प्यार और भाईचारे से गले तो मिलो,
इस रंगो वाली होली की बात अलग है।
ये हुड़दंग वाली मस्ती नहीं,
ये मनचलों वाली कृति नहीं,
यहां सिर्फ प्यार के रंग ही रंग हैं,
इन लाल गुलाबी रंगों की बात ही अलग है।
इसमें शुद्ध मनोभाव से  चेहरे रंगे जाते हैं,
रंगों के प्यार से अपने रिश्ते निभाए जाते हैं,
कोई उंगली उठा के तो देखे इस त्योहार पर,
अभी तक किसी की इतनी औकात नहीं।
बच्चे  रंगों की पिचकारी से सबको खूब नहलाते हैं,
औरतें गुलाल का टीका लगाकर खूब रंग उड़ाती हैं,
होली के रंगो में रंगकर सब बैर भूल जाते ,
इस प्यार भरे रंगों वाली होली की बात अलग है।

                                                               - डॉक्टर जय महलवाल

*****

 "होली आई रे"

होली आई.....होली आई...होली आई रे 
होली आई.....होली आई...होली आई रे 

नीले पीले लाल गुलाबी रंगों का ये त्यौहार,
खुशियों उमंगों से भर देता है सबका संसार।
रंग बिरंगे रंगों में सबको डुबोने होली आई रे,
क्या बच्चे क्या बूढ़े सबकी बनाने टोली आई रे।
होली आई.....होली आई...होली आई रे....

रंग गुलाल से सराबोर तन मन को करेंगे,
ढोल नगाड़े की थाप में सब मिल थिरकेंगे।
गली गली में होली की हुडदंग अब मचेगी,
रंग बिरंगे रंगों से राधा गोरी की चोली सनेगी।
होली आई.....होली आई...होली आई रे....

मदमस्तों की टोली में खुशियां है छाई,
भेदभाव लड़ाई झगडे भूल जाओ भाई।
होली के रंग में खुद रंगों औरों को भी रंगा लो,
छोड़कर सारे दुख विषाद मस्ती में झूमो गा लो।
होली आई.....होली आई...होली आई रे....

ऊंच नीच अमीरी गरीबी सबको भुलाकर,
आओ सब होली मनाएं सबको गले मिलाकर।
होली के रंगों से रंग दो सभी को तुम प्यारे,
खुश होकर दुआ सच्ची देंगे तुमको बेचारे।
होली आई.....होली आई...होली आई रे....

राग द्वेष और भेदभाव की छोड़ो तुम बोली,
मिल जुलकर सतरंगी रंगों से खेलो होली।
इस होली दुश्मनी दूरियां सब तुम भूलाओ,
होली की बोली में चहुं ओर मिठास फैलाओ।।
होली आई.....होली आई...होली आई रे....

                                                                   - मुकेश कुमार सोनकर

*****

होली कुछ ख़ास मनाते हैं
आओ दोस्तों इस वर्ष होली कुछ ख़ास मनाते हैं,
बचपन की यादों को फिर से जगाते हैं।

वह दिन भी क्या गजब के दिन थे,
 जब हम छोटे छोटे नटखट बच्चे थे।

न किसी से किसी का वैमनस्य था,
रहता सबका हमेशा सामंजस्य था।

उम्र से जरूर हम कच्चे थे,
पर दिल के हम सब सच्चे थे।

सब निर्मल मन से होली खेलते थे,
एक दूसरे पर प्यार से रंग उड़ेलते थे।

अब होली में वह पहले जैसी बात नहीं,
होली में रंग तो हैं पर रंगों में जज्बात नहीं।

आओ दोस्तों फिर से ख़ुद को बहकाते हैं,
सब साथ मिलकर होली के रंगों को महकाते हैं।

फिर से होली में जज्बात भरते हैं,
जो दोस्त दूर हो गए उनको साथ करते हैं।

आज सब साथ में अपनत्व के रंग उड़ाते हैं,
फिर से बचपन वाली वह होली सजाते हैं।

आओ दोस्तों इस वर्ष होली कुछ ख़ास मनाते हैं,
बचपन की यादों को फिर से जगाते हैं।

                                                                          - भुवनेश मालव 


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04 March 2024

कविताः रंगमंच




मैं पढ़ूं गजल तो जमाना वाह वाह करता है,
कोई बजाता है ताली तो कोई सोचता है 
तो कोई करता है टिप्पणी,
अलग-अलग प्रसंग हैं यहां तमाम के,
अनोखा रंगमंच है यह जिंदगी,
किरदार में रह कर लोग अभिनय शानदार करते हैं,
कोई करता हैं प्रेम तो दगा हजार करता है 
मीठी-मीठी बातों से सौदा हजार करता है,
कोई झेलता है घाव तो कोई घाव हजार करता है,
मिन्नतों के साथ कोई मन्नत हजार करता है,
मैं दुख पढ़ता हूं अपना और जमाना हंसहंस कर बात करता है,
चुपके चुपके वह बातों में अपनी शिकायत करता है,
कोई कहता है खुद का किस्सा अनोखा 
और कोई दुख की भरमार करता है,
अलग-अलग प्रसंग हैं यहां तमाम के,
अनोखा रंगमंच है यह जिंदगी,
किरदार में रह कर लोग अभिनय शानदार करते हैं,
कोई पहुंचता है सीधे और कोई मार्ग हजार करता है,
धीरे-धीरे सपनों के कोई सौदा हजार करता है,
कोई रखता है धीरज तो कोई आक्रोश हजार करता है,
धीरे-धीरे सफलता का कोई सफर हजार करता है,
मैं कहता हूं सत्य और जमाना मुंह से वाह वाह करता है,
पीठ पीछे क्या पता तानों की बौछार करता है,
भाईचारा यानी क्या! जिसमें राजा बने 
रंक के महल में रंक राज करता है।


                                      - वीरेंद्र बहादुर सिंह