साहित्य चक्र

24 June 2023

साप्ताहिक शब्द प्रतियोगिता विशेषः वसन

 

वस्त्र हमारे शस्त्र 



सौंदर्य की प्रतिमा है, देखने वालों का जमघट है, 
वही स्त्री सुंदर लगती, जिसके सिर पर घूँघट है।

भारतीय संस्कृति में आया है, अब कैसा बदलाव?
तन ढकना मूर्खता है, दस्तूरों का दिखता अभाव।

अजीब तरह के वस्त्र पहनना, बन गया है विधान,
विश्व जगत में प्रसिद्ध हैं, इस देश के ही परिधान।

शिक्षा ग्रहण करके इंसान, बदल रहा है विचार
धोती-कुर्ता, सूट-साड़ी, उनकी नज़रों में गँवार।

आधुनिकता की आड़ में, मत होना कभी निर्वस्त्र,
संस्कारों की करते रक्षा, वस्त्र ही हैं हमारे शस्त्र।

फैशन की आड़ में कम हो रहा, सम्मान का वजन,
बढ़ रहे हैं अपराध और घट रहा देह से वसन,

पाश्चात्य की ओर बढ़ता रहा, इसी तरह आकर्षण,
मर्यादा तो मर जाएगी, ज़िंदा हो जाएंगे दुशासन।

- आनन्द कुमार

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अनमोल रत्न


रोटी भवन और वसन
जीने हेतु है अनमोल रत्न
इन्हे सबो की है जरूरत
लेकिन जैसे जिसकी कूवत
रोटी भवन है मन की बात
वसन है हमारे तन की बात
सलीके से इसे करे धारण
नही तो विपदा का दोगे आमंत्रण
तन की बढाते है ये सूरत
वसन से निखरता है मूरत
वसन धारण का मूल बात
किसी को ना हो आहत
कि वसन  से लज्जा अंग ढके
धारण करने के तरीके पर ना कोई टोके 
लेकिन आजकल पाश्चात्य पहनावा मे
चोट पहुंचाता है हमारे भावना मे
फैशन के नाम पर फूहड वसन
का करने लगे ही धारण
और लज्जा अंगों का करते है प्रदर्शन 
तन पर मामूली सा लिपटे रखते है वसन
इस आधुनिकता की होड मे
नारी पुरूष दोनो है ओर छोर मे
हमे इस कुसंस्कृति से बचना होगा
वसन धारण पर पुनर्विचार करना होगा
सभ्य समाज मे वसन की महत्ता
बचाये रखने की है आवश्यकता 

- चुन्नू साहा

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द्रौपदी की लाज



लोगों को मेरे वसन की
क़ीमत कहां समझ आयेगी,
मेरा मूल्य वही समझ सकते हैं,
जिन्होंने मुझे गहराई से समझा होगा।
में साक्षात्कार हूं स्वयं का,
मुझे कलियुगी लोगों को बताने की,
ज़रुरत नहीं है।
बीच सभा में द्रोपदी का चीर हरण किया,
फिर कोई उनके वसन की 
कीमत को नही समझ सका ‌।
हुए अवतारित कृष्ण 
द्रोपदी की लाज बचाई।

- रामदेवी करौठिया

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वसन की कीमत


मत करो तिरस्कार मेरा, 
मैं वसन हूं, 
या यूं समझ लो सत्कार हूं तेरा। 

जितनी इज्जत से मुझे धारण करोगे, 
उतनी ही मान प्रतिष्ठा पाओगे ,
वरना कौड़ियों के भाव बिक जाओगे। 

अरे 'माही'
 मेरे मूल्य का आलंकान  
लोग कहां ये कलियुगी लोग कर पाएंगे ?

पूछो द्रोपती से कीमत वसन की, 
जिसके लिए स्वयं गोविंद धरा पर आए थे। 


- रचना चंदेल 'माही'

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प्रेम की पराकष्ठा


मुझे लगा कि तुम्हारे लिए मैं विशेष हूं ,
मगर मैं सिर्फ भीड़ का हिस्सा रही ,
तुमने नजरंदाज किया मेरी उपस्थिति को ,
और मेरी मृग तृष्णा मौन होकर ,
तुम्हें दूर खड़े ताकती रही ।
कुछ निढाल से अश्रु लुढ़कर 
गिर पड़े फड़फड़ाते अधरों पर ,
और वह कसैला स्वाद ,
काश ! एक बार तुमने भी चखा होता ।
शायद किसी वसन की तह के मध्य ,
तुमने दबा दी है मेरी स्मृति ,
और मैं गिर पड़ी हूं किसी पाती की तरह,
तुम्हारे कदमों के तले ,
इस प्रतीक्षा में कि उठाकर तुम मुझे चूमों 
और लगा लो अपने हृदय से ।
मेरे प्रेम की पराकाष्ठा उस कल्पना में ,
वहां आकर समाप्त हो जाती है, 
जहां तुम्हारी भुजाओं के बीच 
मेरी धरातल सी देह ,
सिर्फ कुछ शब्दों में सिमटकर रह जाती है ।

- मंजू सागर

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वसन


मैं केवल इक वसन नहीं जो तन को ढकता हूं!
मैं केवल बाहर से नहीं दिखता अपितु 
तुम्हारे मन के मैल को भी अंदर से ढकता हूं !!

ढकता हूं तुम्हारी उस नकारात्मकता को
 जिसको तुम ओढ़े हुए हो बेवजह !
ढकता हूं तुम्हारी उस ईर्ष्या को जो 
तुम दूसरो से करते हो बेवजह !!

मैं केवल तुम्हें बाहर से ही सुंदर नहीं,
 सीरत से सुंदर बनो ये सीख देता हूं!

मुझे पहनो जब भी बस ये दृढ़ संकल्प करना!
मन की मैली चादर छोड़, 
मुझ को जग में सुंदर दिखने देना !!

- रजनी उपाध्याय

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वस्त्र

कलयुग का परिवेश निराला अद्भुत इसके रंग।
अंधा युग अलबेली माया संस्कार हुए भंग।
तन पर पहनें चिथड़े कपड़े समझें स्वयं को रानी।
बची नहीं मर्यादा कोई ना आंखों में पानी।
बचे नहीं परिधान पुराने नया जमाना आया।
कटे फटे कपड़ो का फैशन सबके मन को भाया।
भूल गए प्राचीन सभ्यता कलयुग दृश्य अनोखा।
तन पर पहनें छोटे कपड़े जैसे आज झरोखा।
भाई भाई ताश खेलते मिलकर पिएं शराब।
वर्तमान की दशा निराली सिस्टम हुआ खराब।
खुला बदन अब फैशन आया अब अलबेला प्रेम।
नर नारी में नहीं लचकता नहीं बचा सप्रेम।
पूर्ण वसन नहि तन पर दिखते रंग बिरंगे केश।
अस्त व्यस्त कपड़ो की महिमा अपना दिव्य स्वदेश।
संस्कार की हुई शहादत कलयुग अद्भुत रुप।
कलमकार दिनकर की कविता चमके दिव्य स्वरूप।

- पंकज सिंह "दिनकर"

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दिल के कोने में


तुमने कितनी ख़ामोशी से भुला दिया ,
प्यार के उन पलों को जो संग जिया था कभी।
सुना था.. इंसान कुछ कदम साथ चलकर ,
राह बदल लेते हैं, वसन के जैसे 
रोज़ नये-नये रिश्ते भी बदलते रहते हैं।
हाँ शायद इसलिए..
अब किसी पर ये दिल विश्वास नहीं करता,
वैसे अब वो प्रेम है कहाँ, 
जो हीर रांझा ने किया जो लैला मजनू ने किया 
प्रेम के पथ पर चलकर वो लोग अमर हो गये।
पर मैंने.. तुम्हारे संग बिताये उन 
मोहब्बत के पलों को संजोकर रखा है,
अपने दिल के इक कोने में, 
वसन के जैसे तह लगाकर,
जब-जब भी मुझे तुम्हारी यादें करती हैं बेचैन,
तो मैं अपने यादों के झरोखों से निकाल  
उन पलों को जी लेती हूँ, और झूम उठती हूँ 
ऐसे जैसे कि मैं हूँ अपने प्रियतम की बाहों में..।


- रिंकी सिंह

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रात



रात एक खूबसूरत अहसास है, 
जगाती कितने ही दिलों में ख़्वाब है, 
चाँद धीरे धीरे फ़ना होता है रात की सरगोशियों में , 
तारे भी मधम तान सुनाते है,
आँख मिचोली खेलती है ये बिजलियाँ , 
कुछ हसरतें भी जवान होती हैं,
मन मचल ही जाता ह कुछ मनचलों का 
जैसे जैसे रात सुर्ख़ होती है ये भीगा मौसम ओर ये स्याह रात , 
देती है एक खूबसूरत अहसास
ओस रूपी वसन ओढ़े ये धरती थोड़ी और सर्द हो जाती है
उस सर्द भारी रातों में सभी को 
अपने अपने वसन याद आते है,
कुछ को कम्बलक भाता तो कुछ को साथी का साथ 
कुछ को प्यार का एहसास ही काफ़ी है,
ये रात जगा जाती भीगे एहसास 
उफ़ ये रात 


- डॉ. अर्चना मिश्रा 

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