साहित्य चक्र

29 July 2018

!!!वक्त क्या दिखायेगा कुछ पता नही!!!


दस साल का रोहित अपने पड़ोस में सभी का और अपने घर में सभी का प्यारा था। आसपास के लोग और खुद उसके घर के लोग भी उससे बहुत प्यार करते थे।आस पड़ोस में सबसे अधिक प्यार तो रोहित को पड़ोस में रहने वाली आँटी वीना करती थी। वीना आँटी रोहित से अपने बच्चों की तरह प्यार करती थी।रोहित का बचपन भी काफी समय वीना आँटी के यही गुजरता था।धीरे-धीरे रोहित बड़ा होने लगा।वीना आँटी के बारे में रोहित को सिर्फ इतना ही ज्ञात था कि वह किसी सरकारी नौकरी में किसी अच्छी पोस्ट पर काम करती हैं। सुबह अपने ऑफिस के लिए जाती हैं और शाम को वापस आती है। इतनी ही जानकारी उसके लिए काफी थी।बस उसे तो यह अच्छा लगता था,कि वह उससे बहुत प्यार करती है।अब धीरे-धीरे रोहित अपनी पढ़ाई पूरा करता हुआ बड़ा होने लगा।अब रोहित पढ़-लिखकर पच्चीश साल के युवक के रूप में परिवर्तित हो गया है और वीना आँटी भी अब थोड़ी सी बुजुर्ग हो गई है।पचास साल की उम्र में आज भी उसी तरीके से उसी नित्यक्रम में अपने ऑफिस के लिए जाती है और शाम को आती है।रोहित पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी की परीक्षा दे रहा है।उसकी तैयारी अभी धीरे-धीरे सफलता की ओर बढ़ने लगी हैं और अपने एक साल की मेहनत के बाद रोहित को एक बड़ी सरकारी नौकरी का ऑफर आया और अब उसकी जॉइन करने की तैयारी वह कर रहा था। एक बड़े अधिकारी के रूप में उसका सलेक्शन वहां पर हो गया है रोहित के पहले दिन की जोइनिंग है।अपने ऑफिस में अपनी सीट पर पहली बार बैठते हुए बड़े ही गर्व का अनुभव महसूस करते हुए रोहित अपने जीवन को आगे बढ़ाने की तैयारियां करने लगा किसी कारणवश उसे घंटी दबाकर अपने चपरासी को बुलाना पड़ा। जैसे ही उसने घंटी बजाई, तभी सामने से वीना आँटी एक चपरासी के रूप में उसे आती हुई दिखाई दी।अब क्योंकि वह समझदार हो चुका था तो उसे कुछ भी समय नहीं लगा ये समझने के लिए जिन आँटी को वो आजतक अपनी माँ के रूप में मानता हुआ आया है,वह उसी के आफिस में एक चपरासी का काम करती हैं और अब वह समझ ही नहीं पा रहा था, कि वो किस तरीके से अपनी माँ रूपी आँटी को कुछ भी काम के लिए कहेगा। यही हालत सामने भी उसको दिखाई दे रही है।रोहित इतना व्यतीत हुआ और समझ नहीं पा रहा था कि क्या करना चाहिए।किंतु किसी भी परिस्थिति में काम तो करना ही होगा और धीरे-धीरे रोहित इस माहौल में एडजस्ट होता चला गया।आज वो वीना आँटी को काम कराने के लिए बुलाता भी है और एक अधिकारी के रूप में काम निकालने लगा है शायद यही जीवन की सच्चाई है रिश्ते कब कहां किस मोड़ पर कैसे अपना रूप बदल ले यह किसी को नहीं मालूम।

नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद 


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