साहित्य चक्र

28 March 2022

कविताः क्यों उसे अछूत मानते हो





हो कैसे गई वो अशुद्ध उन दिनों में ?
क्यों उसे अछूत मानते हो?
वहीं लहु तुम्हारे अंदर भी हैं,
 क्या ये बात तुम जानते हो ?
 जिस रक्त को गंदा मानकर तुमने,
 उसे सारे रस्मों रिवाजो को कराने से नकारा हैं।
 
ये मत भूलों कि...
 
उसी खून में लथपथ तुमने भी ,
, नौ महीने गुजारा हैं,
 आस्तित्व तुम्हारा उसी से हैं ,
  जिस बात को तुमने नहीं स्वीकारा हैं,
 हैं यही सच्चाई यही,
  उसी ने तुम्हारा जीवन उबारा हैं,,
 हो तुम भी एक हिस्सा उस अनचाहे रक्त का,
 फिर क्यों अकेले वो ही अशुद्ध हो ?
 तुम भी तो हो, हिस्सेदार उस वक्त का


                                           ख़ुशबू भारती 


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