साहित्य चक्र

29 March 2022

कविताः अंतिम विकल्प




अंतिम विकल्प भारी है 
अब युद्ध की बारी है


 अंतिम विकल्प भारी है
अब युद्ध की बारी है
शह -मात के खेल में
लगी मानवता सारी है।

माटी माटी बंजर होगी
खून से सनी धरती होगी
खड़ी फसलें होगी लहूलुहान
सुनाने को बस कहानी होगी।


घर में सन्नाटा छा जाएगा 
जब हँसाने वाला पिता खो जाएगा
युद्ध की विभीषिका हुकूमरान क्या जाने
जब इक मां से बेटा बिछड़ जाएगा

पल पल मांगे सुनी होगी
माँ की साँसे भी थमी होगी
कलेजा बाहर को आ जायेगा
जब मासूम के कंधों पे पिता की अर्थी होगी

हार जीत का खेल है 
कोई भी जीत जायेगा
उजड़े घरों के छप्पर 
बरसात में कौन बनायेगा

कौन देगा बेटे को हौसला
कोन बेटी के हाथ पीले करवायेगा
माँ का जनाजा किया
बिना बेटे के कंधे के निकल जायेगा।

कलयुग में गीता का सार भूले
द्वापर में कौरव पांडव का घमासान
त्रेता में रावण का संहार किया
फिर भी चाहते हो युद्ध हो इस बार

द्वापर में कृष्ण ने कौरवों को  समझाया
युद्ध का परिणाम विनाश ही लाया
जमीन के टुकड़े के खातिर सबने
मानवता को दांव पे लगाया।


                                 कवि- कमल राठौर साहिल

 

28 March 2022

कविताः क्यों उसे अछूत मानते हो





हो कैसे गई वो अशुद्ध उन दिनों में ?
क्यों उसे अछूत मानते हो?
वहीं लहु तुम्हारे अंदर भी हैं,
 क्या ये बात तुम जानते हो ?
 जिस रक्त को गंदा मानकर तुमने,
 उसे सारे रस्मों रिवाजो को कराने से नकारा हैं।
 
ये मत भूलों कि...
 
उसी खून में लथपथ तुमने भी ,
, नौ महीने गुजारा हैं,
 आस्तित्व तुम्हारा उसी से हैं ,
  जिस बात को तुमने नहीं स्वीकारा हैं,
 हैं यही सच्चाई यही,
  उसी ने तुम्हारा जीवन उबारा हैं,,
 हो तुम भी एक हिस्सा उस अनचाहे रक्त का,
 फिर क्यों अकेले वो ही अशुद्ध हो ?
 तुम भी तो हो, हिस्सेदार उस वक्त का


                                           ख़ुशबू भारती 


कविताः मौत के व्यापारी



नशे के व्यापार से
फायदा उठाने वाले लोग 
जब तक मौजूद हैं इस दुनिया में,
नशामुक्त समाज के आह्वान
और दावे बेमानी ही रहेंगे,
घुसपैठ गहरी है हमारे तंत्र में
जहर बेचने वाले व्यापारियों की,
रोका न गया इन्हें तो
पीढ़ियों की पीढ़ियां यह तबाह करेंगे।


हथियारों के व्यापार से
फायदा उठाने वाले लोग
जब तक मौजूद हैं इस दुनिया में,
युद्ध-मुक्त समाज बनाने के आह्वान
और दावे बेमानी ही रहेंगे,
यह मौत के व्यापारी
ढूंढ लेंगे कोई न कोई बहाना
लोगों को आपस में लड़ाने का,
और देखना एक दिन 
इन हथियारों की दौड़ में यह
सारी दुनिया को तबाह करेंगे।



                              कवि- जितेन्द्र 'कबीर'